Sunday, 25 May 2025

जब तू लौटी, मैं फिर जन्मा - एक रूहानी प्रेम

 तू लौटी…

जैसे सूनी दहलीज़ पर

बरसों से थमी कोई दुआ

अचानक सुन ली गई हो।


ना कोई दस्तक,

ना आहट…

बस वक़्त रुक गया था,

और मेरी रूह चल पड़ी

तुझे बाहों में लेने 


तेरी आँखें…

वही थीं—

जिनमें मैंने

अपना हर जन्म

पहले ही देखा था।


हम मिले…

तो लफ्ज़ गुम थे।

हवाएँ थमीं सी थीं,

बस दो दिलों की धड़कन

खुदा का नज़्म बन गई।


तेरे स्पर्श में

मेरी अधूरी सांसें

अपना आशियाना पा गईं।

तेरी हथेलियों ने

मेरी थकन

पिघला दी, जैसे बरसों की बर्फ़।


मैं तुझमें नहीं लौटा,

तू मुझमें नहीं लौटी 

तेरे होने से मैं बना 

तू बनी क्यूँकि मैं बना 


जब तू बाँहों में समाई,

तो जैसे ज़िन्दगी ने

अपनी पूरी परिभाषा बदल दी।

तेरे आलिंगन की गर्मी से 

एक सदी की 

तन्हाई राख हो गई थी।


तेरे आँचल ने

मेरे आँसुओं को

थाम लिया था 

मेरी आँखों को 

तेरी नज़र ने भांप लिया था 


तेरे होठों का

वो पहला चुम्बन…

कोई चाहत नहीं,

कोई अधीरता नहीं,

वो तो बस वक़्त की पहली धड़कन थी—

जो हमारे लिए ही धड़क रही थी।


मेरी उँगलियाँ

तेरे बालों में उलझीं,

जैसे हर जन्म की स्मृति

फिर से बुन ली गई हो।


तू मेरी कविता नहीं,

तू मेरी कलम बन गई।

तेरा स्वाद,

तेरी साँस,

तेरा हर कंपन—

अब मेरा अस्तित्व है।


अब जब तू लौटी है,

तो ये मिलन

कोई संयोग नहीं—

ये परम सत्य है।


अब हम

ना अलग जिस्म हैं,

ना अलग रूहें।

हम एक हवा हैं,

एक ही दिशा में बहती हवा 


ना कोई दूरी,

ना कोई डर।

ना कोई जन्म

हमें जुदा कर सकता है।


हम वो दुआ हैं

जो कभी अधूरी नहीं रहती 

हम वो रौशनी हैं

जो अंधेरे से नहीं डरती।


तेरे माथे पर रखा

मेरा वो चुम्बन…

मेरे हर ग़म को धो गया।

तेरी गोद में सिर रखकर

मैं जन्मों की नींद सो गया 


अब बस तू है—

तेरे होने में मैं हूँ,

मेरे होने में तू।


हमारे होठ

अब शब्द नहीं बोलते,

हमारी रूह

अब गीत गाती है।


हम जो बिछड़े थे,

अब मिले हैं—

तो ये मिलन

ख़ुद रब की आख़िरी कविता है।


जब तू लौटी…

मैं फिर से

जनमा




No comments:

Post a Comment