Saturday, 24 May 2025

जब मैं न रहूँ - 1

जब मैं न रहूँ

और ये खामोशी 

तेरी साँसों में उतरने लगें,

तो मुझे आवाज़ मत देना —

मैं लौटकर अब कभी नहीं आऊँगा।


मत देखना उस राह को

जहाँ आख़िरी बार मैंने मुड़कर तुझे देखा था,

वहाँ अब सिर्फ़ सन्नाटे हैं —

और मेरी अधूरी साँसें।


जब तुझे लगे कि

तेरा दिल किसी नाम से काँपता है,

तो बस समझ लेना —

वो नाम अब मिट्टी में समा चुका है,

मगर उसकी टीस ज़िंदा है...

तेरे हर धड़कते लम्हे में।


मैं अब नदियों में नहीं बहूँगा,

ना हवाओं में,

ना सूरज की रौशनी में,

मैं रहूँगा —

तेरे भीतर…

एक टीस बनकर,

जिसे तू कभी समझेगी,

पर कह नहीं पाएगी।


तेरे हँसने पर

अब कोई आहट नहीं होगी,

ना मेरी आँखों की चमक,

ना मेरी हथेलियों की गर्मी,

बस कहीं कोई कविता

धीरे से टूटी लय में रोएगी।


तू जब मेरी तस्वीर को देखे,

तो न मुस्कुराना…

वो मुस्कान झूठी लगेगी,

क्योंकि मेरी आँखों में अब

तेरे आने की उम्मीद नहीं बची।


और अगर कभी तू

किसी और की बाँहों में सुकून ढूँढे,

तो किसी ग़म में मत डूबना —

मैं जानता हूँ,

विरह के तपते आँगन में

कभी-कभी परछाइयाँ भी चादर बन जाती हैं।


बस…

एक वादा कर —

मेरे नाम पर आँसू

मत बहाना कभी 

तेरे आँसू मुझे कमज़ोर कर देंगे…

और मैं अब टूटना नहीं चाहता।


मेरी कविताएँ

अब तेरी हैं —

जब तू बहुत अकेली हो जाए,

तो इन्हें खोल लेना

जैसे कोई दरवाज़ा,

जिसके उस पार

मैं अब भी तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ।


मैं अब जीवन नहीं हूँ,

मैं अंतिम श्वास का स्पर्श हूँ,

मैं शून्य में काँपती

तेरी अंतिम पुकार हूँ,

मैं मृत्यु नहीं…

तेरे प्रेम की अमरता हूँ।




No comments:

Post a Comment