Sunday, 25 May 2025

जैसे पहली बार - एक ग़ज़ल

तुम्हारे लौट आने से रुक सी गई सांस मेरी,

बरसों की तन्हाई में खिल गई खुशबू तेरी।


मुस्कुराहट वही थी, न बदली न पुरानी,

चुरा ले गई थी जब आसमां मेरी।


उन्नीस की वही नादान सी उम्मीदें साथ लायीं,

जिसमें ये दिल फिर से खोया, तू फिर से छायी।


हाथों के जादू ने फिर से बाँध दिया हमें,

वो पल जो खो गया था, वो सब कुछ मिला हमें।


हँसी में तेरा नाम फिर से गूंज उठा कहीं,

जैसे बरसात की बूंदें सूखी ज़मीन पर बहीं।


आँखों में छुपा था वो पहला प्यार पुराना,

जो सालों की दूरी में भी था नजदीक हमारे 


स्पर्श तुम्हारा याद था और साथ एक शुरुआत,

हर कोमल एहसास का खुला एक नया सफा 


फुसफुसाहट तेरी, हवा में घुल गई,

पहले चुम्बन की वो मिठास फिर से खिल गई।


चुम्बन वही था, मगर गहराई बढ़ी थी ,

सपनों के दहलीज़ पर फिर से खुशियाँ चढ़ी थीं 


आलिंगन तेरा इक नशा था, इस दिल का जहाँ था,

मैं तुझमें और तू मुझमें समाया हुआ था 


तुमने कहा—“ना छोड़ा कभी तुझको मैंने ,”

मैंने कहा—“ना भूला कोई वादा न अहसास तेरा।”


ना कोई पछतावा, ना फासला रहा,

बस प्यार के सुकून ने फिर से राह पा लिया 


अब हम दो नहीं, एक बन जी रहे हैं,

अब कोई ग़म नहीं, आँखों से मय पी रहे हैं 


तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में, सूरज की पहली किरण,

नया नहीं था वो, बस था अनंत का सिलसिला।


तुम्हें पाया वहीं, जहां मैं था सदा,

पहली बार फिर से, गिरा हूँ तेरे क़दमों पे।




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