ना जाने
और कितनी रातें
गुज़रेंगी
उन ख़्वाबों के बिना
जिनमें कभी
मेरी ज़िन्दगी रहा करती थी
तुम क्या गयीं
इन ख़्वाबों से
जैसे मेरी
ज़िन्दगी चली गयी
तुम्हें तो शायद
मालूम भी न हो
कि यूँ मेरे ख़्वाबों में
तुम ज़िन्दगी बन कर रहती थी
जाने वो ख्वाब
इन आँखों से
कहाँ चले गए
जैसे किसी ने उन्हें
मेरी आँखों से छीन लिया हो
कहीं ये तुम्हारी जिद तो नहीं
मेरी आँखों से
मेरे ख्वाब चुराने की
कि मैं इनके सहारे
ज़िन्दगी जी न सकूं
पर मैं भी
इस जद्दोजहद में हूँ
कि उन ख़्वाबों को
कहीं से ढूंढ कर लाऊं
इन आँखों में सजाऊं
और
इनमें
अपनी ज़िन्दगी गुज़ार दूं
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