कभी यूँ हो कि
मैं कोई ख्वाब बुनूं
और उस ख्वाब में
बस तुम हो
या फिर
यूँ हो कि
मेरे ख़्वाबों की हर ताबीर में
तुम, तुम और बस तुम हो
या यूँ हो कि
जब भी हम तस्सवुर किया करें
उस तस्सवुर में
बस इक तुम हो
या यूँ हो कि
मेरी हर राह जहां से भी गुज़रे
उसकी हर रहगुज़र पर
बस तुम हो
या यूँ हो कि
मैं कोई भी राह चलूँ
हर राह की मंजिल
बस तुम हो
या फिर यूँ हो कि
तुम्हें सोचते हुए
मैं जब भी अपनी आँखें खोलूँ
मेरे सामने मेरे हमदम
बस इक तुम हो
और यूँ हो कि
जो भी हो इसी जनम में हो
क्यूंकि मैं नहीं जानता
जनम जनम का बंधन
बस इतना जानता हूँ कि
इस जनम में तुम हो
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