Wednesday, 13 March 2013

यह सफर......



ठहर गई सी लगती है जिन्दगी
उस माेड़ पर
जहाँ से तुम मुड़ गये थे
उस राह पर
जिस पर नहीं थी
मेरी रहगुज़र
अब न चाहत है उस मंजिल की
जिसके लिये था यह सफर
अब ताे बस है इंतज़ार
कब यह रात ढले
कब हाे इक नई सहर
तुम फिर हाे मेरे साथ
मेरी हमसफर
और हम चल पड़ें
इक नई राह पर
और शुरू करें
इक नया सफर

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