Thursday 28 June 2012

कौन हूँ मैं

कौन हूँ मैं 

कहाँ से आया हूँ

क्यूँ है इतनी अनजान

मुझसे मेरी पहचान 

वैसे तो मैं भिज्ञ हूँ 

अपने इस परिवेश से 

अपनी सांस अपने वेश से 

पर जब तुम पूछती हो 

तुम कौन हो 

मुझसे मेरी पहचान खो जाती है 

मैं बस तुम में समाहित हो जाता हूँ 

अपनी सारी पहचान भुलाकर 

अपना सर्वश्व मिटाकर 

क्यूंकि तुम से ही मेरी पहचान है 

तुम हो तो मैं हूँ 

मैं हूँ क्यूंकि तुम हो 

और यह 

कोई अकस्मात नहीं है 

नियति है 

1 comment:

  1. और यह ...

    कोई अकस्मात नहीं है ...

    नियति है ...

    Wah.....behtareen pradarshan bhavnaon ka

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