कौन हूँ मैं
कहाँ से आया हूँ
क्यूँ है इतनी अनजान
मुझसे मेरी पहचान
वैसे तो मैं भिज्ञ हूँ
अपने इस परिवेश से
अपनी सांस अपने वेश से
पर जब तुम पूछती हो
तुम कौन हो
मुझसे मेरी पहचान खो जाती है
मैं बस तुम में समाहित हो जाता हूँ
अपनी सारी पहचान भुलाकर
अपना सर्वश्व मिटाकर
क्यूंकि तुम से ही मेरी पहचान है
तुम हो तो मैं हूँ
मैं हूँ क्यूंकि तुम हो
और यह
कोई अकस्मात नहीं है
नियति है
कहाँ से आया हूँ
क्यूँ है इतनी अनजान
मुझसे मेरी पहचान
वैसे तो मैं भिज्ञ हूँ
अपने इस परिवेश से
अपनी सांस अपने वेश से
पर जब तुम पूछती हो
तुम कौन हो
मुझसे मेरी पहचान खो जाती है
मैं बस तुम में समाहित हो जाता हूँ
अपनी सारी पहचान भुलाकर
अपना सर्वश्व मिटाकर
क्यूंकि तुम से ही मेरी पहचान है
तुम हो तो मैं हूँ
मैं हूँ क्यूंकि तुम हो
और यह
कोई अकस्मात नहीं है
नियति है
और यह ...
ReplyDeleteकोई अकस्मात नहीं है ...
नियति है ...
Wah.....behtareen pradarshan bhavnaon ka