युद्ध की चाह किसे है
न शासक को
ना शासित को
फिर भी सारा विश्व
आज पटा पड़ा है
युद्ध के एलानों से
दबंगों के फरमानों से
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण
चारों तरफ बस
युद्ध ही युद्ध के नारे हैं
जीते चाहे कोई मगर हम
इंसानियत से हारे हैं
युद्ध बस युद्ध नहीं होता
हर इंसान कितना कुछ खोता
बहन से उसका भाई बिछड़ता
परिवार से बिछड़ता बेटा
अभागन का सुहाग उजड़ता
बच्चों से बिछड़ते पिता
घर घर का किस्सा होता है
हर आँख में आंसू होता है
बन्दूक से निकली गोली से
तोप के उगलते गोलों से
हाय कौन मरा
कौन जला इन शोलों से
कौन जाने
फिर क्यूँ आखिर
युद्ध की ख़ातिर
दांव लगे जवानों की
वीरों की... मस्तानों की
युद्ध की कीमत क्या जाने वो
मोल नहीं जिन्हें इंसानों की
जाने कितनी बलि चढ़े
सपनों की ....अरमानों की
जिस देश की जनता भूखी हो
और देश की धरती सूखी हो
क्या ज़रूरत है उस देश को
हथियारों पर
अपने संसाधन लूटाने की
हथियारों की बात नहीं सिर्फ
शीत युद्ध भी काफी है
अर्थ व्यवस्था दरकाने को
श्रेष्ठता की इस दौड़ में लगे हैं सब
वर्चस्वता अपनी मनवाने को
जो श्रेष्ठ है ...वह डरा हुआ है
श्रेष्ठता अपनी गंवाने को
जो निर्बल है ...उसे भय है
फिर पराधीन हो जाने को
बुद्ध जीसस राम खुदा
युद्ध किसी ने नहीं लिखा
फिर कहाँ से इंसानों ने
आपस में लड़ना सिखा
क्या कोई रास्ता नहीं है
भाईचारा फ़ैलाने को
फिर देश नहीं कोई
द्वेष नहीं कोई
हर कोई भाई भाई हो
खुशियाँ फिर बांटी जाएँ
दुखों का भी बंटवारा हो
ऐसा हो तो विश्व में सारे
सुखों का उजियारा हो
न शासक को
ना शासित को
फिर भी सारा विश्व
आज पटा पड़ा है
युद्ध के एलानों से
दबंगों के फरमानों से
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण
चारों तरफ बस
युद्ध ही युद्ध के नारे हैं
जीते चाहे कोई मगर हम
इंसानियत से हारे हैं
युद्ध बस युद्ध नहीं होता
हर इंसान कितना कुछ खोता
बहन से उसका भाई बिछड़ता
परिवार से बिछड़ता बेटा
अभागन का सुहाग उजड़ता
बच्चों से बिछड़ते पिता
घर घर का किस्सा होता है
हर आँख में आंसू होता है
बन्दूक से निकली गोली से
तोप के उगलते गोलों से
हाय कौन मरा
कौन जला इन शोलों से
कौन जाने
फिर क्यूँ आखिर
युद्ध की ख़ातिर
दांव लगे जवानों की
वीरों की... मस्तानों की
युद्ध की कीमत क्या जाने वो
मोल नहीं जिन्हें इंसानों की
जाने कितनी बलि चढ़े
सपनों की ....अरमानों की
जिस देश की जनता भूखी हो
और देश की धरती सूखी हो
क्या ज़रूरत है उस देश को
हथियारों पर
अपने संसाधन लूटाने की
हथियारों की बात नहीं सिर्फ
शीत युद्ध भी काफी है
अर्थ व्यवस्था दरकाने को
श्रेष्ठता की इस दौड़ में लगे हैं सब
वर्चस्वता अपनी मनवाने को
जो श्रेष्ठ है ...वह डरा हुआ है
श्रेष्ठता अपनी गंवाने को
जो निर्बल है ...उसे भय है
फिर पराधीन हो जाने को
बुद्ध जीसस राम खुदा
युद्ध किसी ने नहीं लिखा
फिर कहाँ से इंसानों ने
आपस में लड़ना सिखा
क्या कोई रास्ता नहीं है
भाईचारा फ़ैलाने को
फिर देश नहीं कोई
द्वेष नहीं कोई
हर कोई भाई भाई हो
खुशियाँ फिर बांटी जाएँ
दुखों का भी बंटवारा हो
ऐसा हो तो विश्व में सारे
सुखों का उजियारा हो
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