Sunday, 4 May 2025

उसको मिलने की हसरत

 उसको मिलने की हसरत

दिल में लिए

दर-ब-दर भटकता हूँ मैं

उसको पाने की

तमन्ना लिए

गली-गली घूमता हूँ मैं


हर साया उसका

लगता है जैसे

रौशनी की दस्तक हो कोई

हर हवा में

उसकी ख़ुशबू लिए

जैसे इश्क़ की महक हो कोई


उसके नाम से

धड़कन जुड़ी है

हर पल उसी का ज़िक्र करे

हर रात मेरी

उसकी यादों में

चुपचाप सहर तक सिसक करे


हर कदम उसका

ढूंढ़ता हूँ मैं

भीड़ में भी तन्हा होता हूँ

हर मोड़ पे

उसकी आहट लिए

खुद से ही उलझा होता हूँ


उसकी बातों की

चाशनी में

हर लफ़्ज़ को पिघलाता हूँ

उसके ख्वाबों की

रौशनी में

हर रात को मैं जलाता हूँ


उसके लबों की

मिठास लिए

हर गीत में बहता हूँ मैं

उसकी नजर की

प्यास लिए

हर शेर में कहता हूँ मैं


हर दुआ में

उसका नाम छुपा

जैसे खुदा से मांगता हूँ

हर जुमले में

उसकी सदा

जैसे उसे ही जानता हूँ


उसकी हँसी की

चमक लिए

हर सुबह में जागा हूँ मैं

उसके ग़मों की

छांव तले

हर शाम को भागा हूँ मैं


वो न मिले तो

दुनिया फीकी

जैसे रंग सारे उड़ जाते हैं

वो जो दिखे तो

पल में लगे

जैसे सारे मौसम मुड़ आते हैं


उसके बिना ये

सांसें मेरी

सिर्फ़ चलन भर लगती हैं

उसके करीब तो

धड़कनें भी

सुरों में ढल कर जगती हैं


अब तो उसे ही

रब मान के

इबादतों में रखता हूँ

वो हो जहाँ भी

उसकी खातिर

हर राह में झुकता हूँ


एक दिन शायद

किस्मत जागे

और सामने वो आ जाए

मेरी तन्हा

बिखरी रूह को

अपने होंठों से सजा जाए


उसकी नज़रों की

शबनम बनकर

मेरे माथे पे ठहर जाए

उसकी बाहों की

गर्माहट में

ये टूटे लम्हें संवर जाएँ


मैं कह सकूं

बस इतना भर —

"तेरे लिए ही जिया हूँ मैं"

वो मुस्कुराकर

कह दे अगर —

"सचमुच, तेरा ही हुआ हूँ मैं"


फिर न भटकना

न तड़पना हो

न कोई ग़म, न फासला हो

इश्क़ हो सिर्फ़

उसका और मेरा

और बाक़ी सब हाशिया हो

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