जब मैंने तुमको
पहली बार देखा था
तुम यौवन की दहलीज़ पर
सजधज कर खड़ी थीं
मासूम मुस्कान,
अपलक नज़रें
मेरे दिल में उतर गईं
मेरे होंठों पर
हल्की सी मुस्कान तैर गई
जैसे किस्मत ने
हमें मिलाने का
इंतज़ाम पहले से कर रखा हो
भीड़ थी चारों ओर
पर तुम्हारी आँखें
बस मेरी आँखों को
ढूंढ रही थीं
और मेरी रूह
तुमसे जा मिली
फिर मिलने लगे हम
बार-बार, चुपचाप
हर बार तुम्हें
अपलक निहारता रहा
तुम शरमाकर
रंगों में ढल जाती थीं
जब तुम्हें आलिंगन करता
तुम्हारा तन जैसे
फूल बनकर
मेरे दिल से चिपक जाता
धड़कनों की लय
हमारे बीच पुल बन जाती
हम बोलते नहीं थे
फिर भी सब कहते थे
रूहें एक थीं
बस देहें अलग
फिर एक दिन
बिलकुल अनजाने में
हमारे बीच
खामोशी की एक
दीवार खड़ी हो गई
वो लोग
जिन्हें हमने
अपना माना था
उन्होंने ही
तेरे दिल में
मेरे लिए ज़हर घोला
तेरी आंखों में
अब सवाल थे
विश्वास की जगह
शक ने ले ली थी
मैंने चाहा
कि तुझसे कहूं
सब कुछ,
पर मेरी चुप्पी
मेरे खिलाफ गवाही बन गई
तेरे लब खामोश थे
पर तेरी आँखें
मुझसे कट रही थीं
हर दिन
थोड़ा-थोड़ा
मैं तुझसे दूर होता गया
और फिर
एक दिन
तू चली गई
बिना कुछ कहे
बिना मुड़ के देखे
मुझे नहीं पता
किसका कसूर ज़्यादा था
उनका जो बीच में आए
या मेरा
जो तेरे दिल की परतों में
उतर ही न सका
तेरे जाने के बाद
हर रात
एक सज़ा बन गई
तेरी यादें
मुझे लोरी बनकर नहीं
चीख बनकर सताती रहीं
मैं हँसता था
लोगों के सामने
पर हर मुस्कान
तेरे नाम का मातम थी
तेरी गंध
अब भी मेरी उंगलियों में बसती थी
तेरी परछाई
हर आइने में मुझसे टकराती थी
मैं ज़िंदा था
पर उस दिन से
हर रोज़ थोड़ा-थोड़ा
मरता रहा
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