Monday, 12 May 2025

जब मैंने तुमको पहली बार देखा था - 4

जब मैंने तुमको

पहली बार देखा था

तुम यौवन की दहलीज़ पर

सजधज कर खड़ी थीं

मासूम मुस्कान,

अपलक नज़रें

मेरे दिल में उतर गईं


मेरे होंठों पर

हल्की सी मुस्कान तैर गई

जैसे किस्मत ने

हमें मिलाने का

इंतज़ाम पहले से कर रखा हो


भीड़ थी चारों ओर

पर तुम्हारी आँखें

बस मेरी आँखों को

ढूंढ रही थीं

और मेरी रूह

तुमसे जा मिली


फिर मिलने लगे हम

बार-बार, चुपचाप

हर बार तुम्हें

अपलक निहारता रहा

तुम शरमाकर

रंगों में ढल जाती थीं


जब तुम्हें आलिंगन करता

तुम्हारा तन जैसे

फूल बनकर

मेरे दिल से चिपक जाता

धड़कनों की लय

हमारे बीच पुल बन जाती


हम बोलते नहीं थे

फिर भी सब कहते थे

रूहें एक थीं

बस देहें अलग 


फिर एक दिन

बिलकुल अनजाने में

हमारे बीच

खामोशी की एक

दीवार खड़ी हो गई


वो लोग

जिन्हें हमने

अपना माना था

उन्होंने ही

तेरे दिल में

मेरे लिए ज़हर घोला


तेरी आंखों में

अब सवाल थे

विश्वास की जगह

शक ने ले ली थी


मैंने चाहा

कि तुझसे कहूं

सब कुछ,

पर मेरी चुप्पी

मेरे खिलाफ गवाही बन गई


तेरे लब खामोश थे

पर तेरी आँखें

मुझसे कट रही थीं

हर दिन

थोड़ा-थोड़ा

मैं तुझसे दूर होता गया


और फिर

एक दिन

तू चली गई

बिना कुछ कहे

बिना मुड़ के देखे


मुझे नहीं पता

किसका कसूर ज़्यादा था

उनका जो बीच में आए

या मेरा

जो तेरे दिल की परतों में

उतर ही न सका


तेरे जाने के बाद

हर रात

एक सज़ा बन गई

तेरी यादें

मुझे लोरी बनकर नहीं

चीख बनकर सताती रहीं


मैं हँसता था

लोगों के सामने

पर हर मुस्कान

तेरे नाम का मातम थी


तेरी गंध

अब भी मेरी उंगलियों में बसती थी

तेरी परछाई

हर आइने में मुझसे टकराती थी


मैं ज़िंदा था

पर उस दिन से

हर रोज़ थोड़ा-थोड़ा

मरता रहा


बरसों बीत गए

तेरी आवाज़

अब भी मेरे कानों में

गूंजती थी

तेरी हँसी

हर भीड़ में

मुझे अपनी तरफ खींचती थी



मैंने तुझसे दूर होकर

जितना समय जिया

वो जीना नहीं

बस साँसों की गिनती थी

हर लम्हा

तेरे बिना अधूरा था

जैसे कविता से शब्द

चुपचाप चले गए हों



और फिर

एक दिन, यूँ ही

वो चौराहा

जहाँ ज़िन्दगी थमी सी लगती थी

तू वहीं खड़ी थी


वो ही आँखें,

पर अब थोड़ी थकी हुई

वो ही मासूमियत

पर उसके नीचे

वर्षों का इंतज़ार जमी हुई थी



हम चुप रहे

पर दिल चीख पड़े

तेरी आँखें

मुझे टटोल रही थीं

क्या अब भी वही हूँ

जिससे तुम कभी

बेपनाह मोहब्बत करती थीं?


मैंने कुछ नहीं कहा

बस तेरा हाथ थामा

तू काँपी नहीं इस बार

बस धीरे से

मेरे कंधे पर सिर रख दिया



वो एक लम्हा

सालों की दूरी को

पिघलाकर

हमारे बीच बहा ले गया

अब न कोई सवाल थे

न सफ़ाई

न गिला

बस सुकून था

कि तू वापस है

और मैं भी



अब जो पल हैं

वो उधार के नहीं

जैसे हर बीता दर्द

हमारे मिलन की कीमत था

अब हर धड़कन

कविता है

हर स्पर्श

एक प्रार्थना



हम नहीं पूछते

कि क्यों बिछड़े थे

हम बस

हर सुबह एक-दूजे को देखकर

मुस्कुरा लेते हैं

जैसे ये जीवन

हमारा फिर से लिखा गया हो

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