जब से तुम गई हो,
हर चीज़
मुझसे कुछ कहती है।
हर सुबह
तेरी गैरहाज़िरी से सहमी रहती है।
खिड़की पे
अब धूप भी उदास लगती है,
और हवा
तेरे आँचल सी नहीं बहती है।
चाय की प्याली में
अब स्वाद नहीं आता,
तेरे होंठों की हल्की मुस्कान
हर घूँट से गायब है।
आईना
अब मुझसे नज़रें चुराता है,
तेरे बिना
मेरा चेहरा भी मुझे डराता है।
वो किताबें
अब पढ़ी नहीं जातीं,
क्योंकि हर पन्ने पर
तेरी उँगलियों की छाप है।
छत पर टहलता हूँ
तेरे नक्श-ए-क़दम ढूँढने,
तारे
अब तुझसे सवाल करते हैं मेरी ओर से।
बारिश
पहले भीगती थी हँसी में,
अब
भीतर तक जला देती है।
सावन
अब सिर्फ़ हरियाली नहीं लाता,
तेरे जाने की हूक
बूँद-बूँद में बरसाता है।
रातें
सिर्फ़ लंबी नहीं हुईं,
अब
तेरा नाम पुकारती तन्हा हो गई हैं।
तेरे कंधे पर
सर रख कर रो लेने की
जो आदत थी,
अब वो आँसुओं में डूबती आदत हो गई है।
तू पहली मोहब्बत थी
और शायद आख़िरी भी,
अब किसी और को चाहना
ख़ुद से गद्दारी लगती है।
हर दुआ में
अब तेरा नाम नहीं आता,
क्योंकि तू
ख़ुद एक अधूरी दुआ बन चुकी है।
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