Monday, 12 May 2025

पहली नज़र - 1

1. पहली नज़र

कक्षा में जैसे ही प्रवेश किया,

दीवारों पर विचार थे, आँखों में सपने।

सौ से अधिक चेहरों की हलचल में,

मुझे सिर्फ़ एक चेहरा ठहरा हुआ लगा।

तुम बैठी थीं खिड़की के पास,

धूप तुम्हारे बालों से फिसलती हुई किताब पर गिर रही थी।

और वहीं... मेरी नज़र तुम्हारी नज़र से मिली —

किसी अनकहे पूर्व जन्म की पुकार सी।


2. मौन संवाद

वो नज़रें टकराईं, लेकिन झुकी नहीं,

वो एक टक देखती रहीं जैसे कोई रहस्य खोलना हो।

मेरे भीतर कुछ हिला —

मानो किसी ने सोते हुए दिल को आवाज़ दी हो।

हमने कुछ नहीं कहा,

पर मौन में एक पूरी बातचीत गूंज गई थी।

कक्षा के शब्दों से ज़्यादा तुम्हारी आँखों ने सिखाया उस दिन,

कि प्रेम की भाषा का पहला अक्षर, मौन होता है।


3. मिलने लगे हम

तब से हर दिन बस एक प्रयास होता —

कि कहीं, किसी मोड़ पर, तुम्हारा चेहरा दिख जाए।

कॉरिडोर की भीड़ में,

किताबों की कतारों में,

हमारे रास्ते जाने अनजाने टकराने लगे।

तुम्हारा पास होना ही

जैसे किसी गीत की पहली धुन हो,

जिसे सुनते ही दिल झूमने लगे,

बिना परिभाषा के, बिना अधिकार के, बस अपनेपन में।


4. सौंदर्य की अभिव्यक्ति

तुम्हें देखना किसी पूजा सा अनुभव था —

एक आस्था, जो समझ से परे थी।

तुम्हारी आँखें गहरी थीं —

जैसे उनमें कोई नदी बहती हो, शांत और स्थिर।

तेरा चेहरा देखता तो लगता —

जैसे कोई सुबह पहली बार आसमान से उतर रही हो।

और उस सुबह में मैं —

खुद को खोकर, खुद को पा जाता था।


5. मेरा तुम्हें थामना

एक दिन जब तुम काँपती सी मेरे पास आईं,

मैंने तुम्हें बाँहों में भर लिया —

वो आलिंगन कोई प्रेम का प्रदर्शन नहीं था,

वो दो आत्माओं की धड़कनों का संगम था।

तुम्हारे सिर का वजन मेरे कंधे पर था,

और मेरा सारा बोझ उस पल उतर गया।

दुनिया ठहर गई, समय रुक गया,

बस तुम थीं... और मैं, तुम्हारी साँसों के ठीक बीच।


6. पहला चुम्बन

तुम्हारे होंठों पर हल्की सी नमी थी —

जैसे किसी कविता की अंतिम पंक्ति लिखी जानी हो।

मैंने उन्हें छुआ —

न किसी स्वीकृति की ज़रूरत थी, न किसी डर की।

उस चुम्बन में शब्द नहीं थे,

बस स्मृतियाँ थीं, जो बन रही थीं।

हमने एक-दूसरे को पा लिया था,

जैसे आत्माओं का कोई प्राचीन समझौता पूरा हुआ हो।


7. प्रेम का विस्तार

हम समय के पार चलने लगे थे —

छोटी-छोटी बातों में, अनगिनत छुअनों में,

तेरी मुस्कान में मेरी प्यास बुझती थी,

और मेरी आँखों में तुझे घर नज़र आता था।

ये प्रेम किताबों का नहीं था,

ना ही दुनिया की कसौटी पर खरा उतरने वाला,

ये बस दो आत्माओं का धीमा लेकिन अडिग विलयन था —

नम्र, सच्चा, और बेआवाज़।


8. साज़िशें और अलगाव

पर प्रेम की सरलता सबको कहाँ समझ आती है?

कुछ लोगों ने हमें देख लिया,

और वो जो देख न सके — वो हमारा रिश्ता था।

उन्होंने बातें बनाईं, दीवारें खड़ी कीं,

हमें बाँटने के लिए समाज की आड़ ली।

तुमने चुप्पी ओढ़ ली,

मैंने विरोध नहीं किया।

क्योंकि शायद हम दोनों जानते थे,

कि कुछ बिछड़नें चुप रहकर ही सहनी होती हैं।


9. मौन बिछड़ाव

तुम चली गईं —

ना अलविदा, ना स्पष्टीकरण।

मैं वहीं खड़ा रहा —

उसी कोने पर जहाँ पहली बार तुम्हें देखा था।

हर दिन वहीं से गुज़रता,

कि शायद फिर से मिलो,

पर सिर्फ़ हवा आती थी,

जिसमें अब भी तुम्हारी ख़ुशबू रहती थी।


10. तलाश और समय

समय बीतता रहा —

बालों में चाँदी उतर आई,

चेहरे पर झुर्रियाँ, पर दिल वैसा ही रहा।

हर शहर में, हर चेहरे में तुम्हें ढूँढा —

जैसे अधूरी कहानी का अंत खोजता कोई लेखक।

कभी कोई ख़बर नहीं मिली,

फिर भी उम्मीद ज़िंदा रही —

क्योंकि तुम कोई ख़्वाब नहीं थीं,

तुम मेरी अधूरी साँस थीं।


11. पुनर्मिलन

और फिर… एक दिन,

वक़्त ने जैसे माफ़ कर दिया सब कुछ।

तुम सामने खड़ी थीं,

सालों बाद भी वैसी ही —

शांत, सुंदर, और पूरी मेरी।

हमने कुछ नहीं कहा,

आँखें ही काफी थीं इस बार भी —

बताने के लिए कि प्रेम रुकता नहीं,

वो बस किसी मोड़ पर इंतज़ार करता है।


12. अब और हमेशा

अब जब हम साथ हैं,

तो उम्र की कोई गिनती नहीं रही।

अब न समय का डर है,

न समाज का दबाव।

हमने सीखा है —

कि प्रेम लौट सकता है,

अगर वो सच्चा हो…

तो वो अंत नहीं मांगता — बस साथ मांगता है,

साँसों तक... और उससे आगे भी।




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