Thursday, 22 May 2025

जब से तुम गई हो - 1

जब से तुम गई हो,

आसमान

कुछ कहता नहीं।

शामें

अब आँखों में बहती नहीं।


सवेरा

तेरे बिना डरता है,

धूप

मेरे दर पे नहीं उतरता है।


हवाएँ

अब तेरी ख़ुशबू नहीं लातीं,

और बारिश

अब राहत नहीं, सज़ा बन जाती।


हर बूँद

जैसे कोई याद गिरा दे,

और मेरा मन

तेरे बिना जलता चला जाए।


तकिया

अब मेरा राज़दार है,

हर रात

तेरी चुप्पी में डूबा संसार है।


किताबों के पन्ने

तेरा नाम चुपके से पढ़ते हैं,

तेरी उंगलियों के निशान

अब भी पन्नों पे बहते हैं।


आईना

अब झूठ दिखाता है,

मेरा चेहरा

मुझसे ही छिप जाता है।


छत पे

तेरी परछाईं ढूँढता हूँ,

और तारे

तेरे सवाल दोहराते हैं मुझसे।


अब दुआ

तेरे नाम से खाली है,

तू

अब अधूरी सी ख्वाहिश बन चुकी है।


सड़कें

तेरे पीछे रोती हैं,

हर मोड़

तेरी यादें संजोती हैं।


कुछ कहता हूँ

तो तेरा नाम उभर आता है,

कुछ सोचता हूँ

तो तू हर ख्याल में समा जाता है।


तू पहली थी —

जैसे दिल की पहली धड़कन,

और अब

तू ही है — हर साँस की तड़पन।


अब इश्क़

सच नहीं लगता,

तेरे बिना

कोई भी अपना नहीं लगता।


तू थी

मौसम, कविता, साँस, दुआ,

अब तू ही

बन गई है मेरी अधूरी दास्ताँ।




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