ना जाने
और कितनी रातें
गुज़रेंगी
उन ख़्वाबों के बिना
जिनमें कभी
मेरी ज़िन्दगी रहा करती थी
तुम क्या गयीं
इन ख़्वाबों से
जैसे मेरी
ज़िन्दगी चली गयी
तुम्हें तो शायद
मालूम भी न हो
कि यूँ मेरे ख़्वाबों में
तुम ज़िन्दगी बन कर रहती थी
जाने वो ख्वाब
इन आँखों से
कहाँ चले गए
जैसे किसी ने उन्हें
मेरी आँखों से छीन लिया हो
कहीं ये तुम्हारी जिद तो नहीं
मेरी आँखों से
मेरे ख्वाब चुराने की
कि मैं इनके सहारे
ज़िन्दगी जी न सकूं
पर मैं भी
इस जद्दोजहद में हूँ
कि उन ख़्वाबों को
कहीं से ढूंढ कर लाऊं
इन आँखों में सजाऊं
और
इनमें
अपनी ज़िन्दगी गुज़ार दूं
Monday, 29 April 2013
Sunday, 28 April 2013
बंज़र आँखें
कितनी रातें
बीत गयीं
इन आँखों में कोई
ख्वाब नहीं
ख्वाब कहाँ से होंगे
जब आँखों में
नींद नहीं
बंजर सी क्यूँ हो गयीं
इन आँखों की ज़मीं
खारे पानी से
सींचते रहे हम इन्हें
शायद कहीं
यही वजह तो नहीं
अब तो बस
यूँ ही
ये बंज़र आँखें
तकती रहेंगी राह यहीं
कि कभी कोई ख्वाब
जो राह भटके ही सही
इन आँखों में
पा जाए पनाह कहीं
बीत गयीं
इन आँखों में कोई
ख्वाब नहीं
ख्वाब कहाँ से होंगे
जब आँखों में
नींद नहीं
बंजर सी क्यूँ हो गयीं
इन आँखों की ज़मीं
खारे पानी से
सींचते रहे हम इन्हें
शायद कहीं
यही वजह तो नहीं
अब तो बस
यूँ ही
ये बंज़र आँखें
तकती रहेंगी राह यहीं
कि कभी कोई ख्वाब
जो राह भटके ही सही
इन आँखों में
पा जाए पनाह कहीं
मोहब्बत
दूर तक
देखना
जहां तक
निगाहों की हद है
हर शय में
तुम्हें
बस मोहब्बत ही नज़र आएगी
'गर दिल में
अपने मोहब्बत का
आशियाना बनाओगी
कायनात भी
मोहब्बत के रंग में
रंगी हुई नज़र आएगी
'गर दिल में
अपने मोहब्बत की
लौ जलाओगी
हर लम्हे में बस
मोहब्बत ही मोहब्बत
पाओगी
'गर दिल में
अपने मोहब्बत का
अरमां जगाओगी
मोहब्बत कर के देखो
खुदा की इबादत करना
सिख जाओगी
Saturday, 27 April 2013
उसके होने का अहसास
कभी कभी
यूँ लगता है
कोई मेरे आसपास है
या फिर
उसके होने का अहसास है
उसके आते ही
हवाओं में
खुशबू सी तैर जाती है
और हवाएं बालों में
जैसे उँगलियाँ फेर जाती हैं
उसके पास होने का अहसास
कितना मदभरा है
जैसे हज़ारों जामों का नशा
सर पर चढ़ा है
उसकी बातों में
प्यार का सिलसिला है
जैसे अभी अभी
कहीं गुलाब खिला है
उसके आते ही
हर शय गुनगुनाने लगती है
गीत मोहब्बत के सुनाने लगती है
जाने कैसा जादू है
उसके आने में
बहार सी छा जाती है
वीराने में
लब लरज़ने लगते हैं यूँ
जैसे कुछ कहना चाहती हों
धडकनें बेतरतीब सी हो जाती हैं
जैसे उनके दिल में रहना चाहती हों
भले ही तुम इक अहसास रहो
पर यूँ ही मेरे आसपास रहो
यूँ लगता है
कोई मेरे आसपास है
या फिर
उसके होने का अहसास है
उसके आते ही
हवाओं में
खुशबू सी तैर जाती है
और हवाएं बालों में
जैसे उँगलियाँ फेर जाती हैं
उसके पास होने का अहसास
कितना मदभरा है
जैसे हज़ारों जामों का नशा
सर पर चढ़ा है
उसकी बातों में
प्यार का सिलसिला है
जैसे अभी अभी
कहीं गुलाब खिला है
उसके आते ही
हर शय गुनगुनाने लगती है
गीत मोहब्बत के सुनाने लगती है
जाने कैसा जादू है
उसके आने में
बहार सी छा जाती है
वीराने में
लब लरज़ने लगते हैं यूँ
जैसे कुछ कहना चाहती हों
धडकनें बेतरतीब सी हो जाती हैं
जैसे उनके दिल में रहना चाहती हों
भले ही तुम इक अहसास रहो
पर यूँ ही मेरे आसपास रहो
Monday, 22 April 2013
कभी यूँ हो कि
कभी यूँ हो कि
मैं कोई ख्वाब बुनूं
और उस ख्वाब में
बस तुम हो
या फिर
यूँ हो कि
मेरे ख़्वाबों की हर ताबीर में
तुम, तुम और बस तुम हो
या यूँ हो कि
जब भी हम तस्सवुर किया करें
उस तस्सवुर में
बस इक तुम हो
या यूँ हो कि
मेरी हर राह जहां से भी गुज़रे
उसकी हर रहगुज़र पर
बस तुम हो
या यूँ हो कि
मैं कोई भी राह चलूँ
हर राह की मंजिल
बस तुम हो
या फिर यूँ हो कि
तुम्हें सोचते हुए
मैं जब भी अपनी आँखें खोलूँ
मेरे सामने मेरे हमदम
बस इक तुम हो
और यूँ हो कि
जो भी हो इसी जनम में हो
क्यूंकि मैं नहीं जानता
जनम जनम का बंधन
बस इतना जानता हूँ कि
इस जनम में तुम हो
मैं कोई ख्वाब बुनूं
और उस ख्वाब में
बस तुम हो
या फिर
यूँ हो कि
मेरे ख़्वाबों की हर ताबीर में
तुम, तुम और बस तुम हो
या यूँ हो कि
जब भी हम तस्सवुर किया करें
उस तस्सवुर में
बस इक तुम हो
या यूँ हो कि
मेरी हर राह जहां से भी गुज़रे
उसकी हर रहगुज़र पर
बस तुम हो
या यूँ हो कि
मैं कोई भी राह चलूँ
हर राह की मंजिल
बस तुम हो
या फिर यूँ हो कि
तुम्हें सोचते हुए
मैं जब भी अपनी आँखें खोलूँ
मेरे सामने मेरे हमदम
बस इक तुम हो
और यूँ हो कि
जो भी हो इसी जनम में हो
क्यूंकि मैं नहीं जानता
जनम जनम का बंधन
बस इतना जानता हूँ कि
इस जनम में तुम हो
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