जकड़ा हूँ
जाने किन ज़ंज़ीरों में
कागज़ पर
खिंची चंद लकीरों में
कि
साँसों को भी
मुहाल है ज़िन्दगी
जाने क्यूँ
बदहाल है ज़िन्दगी
छटपटाता हूँ
पर कटे पंछी की तरह
तड़पता हूँ
जल बिन मछली की तरह
राह कोई सूझता नहीं
चाह कोई बूझता नहीं
मतलब के लिए सब अपने हैं
मतलबों से बाहर सब सपने हैं
ज़िन्दगी जी रहा हूँ औरों के लिए
अपनों को खो रहा हूँ गैरों के लिए
अब और बोझ नहीं उठा सकता
खुद को और नहीं गिरा सकता
ए मौत तू क्यूँ नहीं दखल देती
अपनी बाहों में क्यूँ नहीं भर लेती
थक चुका हूँ मौत से पहले मर मर कर
अब शायद सुकून मिले सच में मर कर
जाने किन ज़ंज़ीरों में
कागज़ पर
खिंची चंद लकीरों में
कि
साँसों को भी
मुहाल है ज़िन्दगी
जाने क्यूँ
बदहाल है ज़िन्दगी
छटपटाता हूँ
पर कटे पंछी की तरह
तड़पता हूँ
जल बिन मछली की तरह
राह कोई सूझता नहीं
चाह कोई बूझता नहीं
मतलब के लिए सब अपने हैं
मतलबों से बाहर सब सपने हैं
ज़िन्दगी जी रहा हूँ औरों के लिए
अपनों को खो रहा हूँ गैरों के लिए
अब और बोझ नहीं उठा सकता
खुद को और नहीं गिरा सकता
ए मौत तू क्यूँ नहीं दखल देती
अपनी बाहों में क्यूँ नहीं भर लेती
थक चुका हूँ मौत से पहले मर मर कर
अब शायद सुकून मिले सच में मर कर
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