Monday, 4 March 2013

तुम्हारी यादें


देश की मिटटी की सोंधी महक
परदेश चली आई है
मेरी डायरी के उन पन्नों में
मेरे साथ
जिसमें मैंने
तुम्हारा नाम लिखा था
कितनी यादें भी
चली आयीं हैं
उस महक के साथ
तुम्हारा मुस्कुराना
तुम्हारा रूठना
मेरा मनाना
वो इंतज़ार
फिर वस्ल-ए-यार
और फिर एक लम्बा इंतजार
तुम समझती हो न
मैं जब भी तुमसे यूँ दूर जाता हूँ
तुम्हारी यादों के साथ साथ
उस मिटटी की महक भी चली आती है
मेरी डायरी के उन पन्नों में
जिसमें मैंने तुम्हारा नाम
जाने कितनी बार
और कितनी हरफ में लिखा था
तुम जब भी याद आई थी
आज भी
तुम बहुत याद आ रही हो
और तुम्हारे साथ
उस मिटटी की महक भी आ रही है
अपने देश की मिटटी की सोंधी महक

No comments:

Post a Comment