Thursday, 21 February 2013

तुम्हारी यादें ...मेरे अहसास


प्रिये

अब जब तुम नहीं हो

मेरे पास

मैं समेट रहा हूँ

तुम्हारी सारी यादें

तुम्हारे हर अहसास

कि रख सकूं इन्हें

अपने ह्रदय के अन्दर

सुरक्षित

सबकी नज़रों से दूर

सबकी छुअन से

वंचित

हर उस जगह को

जहाँ तुम्हारे कदम पड़े थे

मैंने मंदिर बना दिया है

हर उस जगह को

जहाँ तुम पल भर को भी ठहरी थी

तुम्हारी यादों से सजा दिया है

हर उस चीज़ से

जिसे तुमने छुआ था

तुम्हारे स्पर्श का आभास हुआ है

तुम्हारे बदन की खुशबू

हवा में ऐसे घुल मिल गयी है

मेरी साँसों को उसने महका दिया है

अब जब तक

तुम फिर नहीं आओगी

इन्हीं बटोरी हुयी यादों

और अहसासों के सहारे

तुम्हारे फिर से आने का

मैं इंतज़ार करूंगा

प्रिये


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