Friday, 25 April 2025

मैं और मेरी तन्हाई

 रात की चुप में डूबा हूँ मैं,

हर सवेरा अधूरा सा लगे।

आँखों में बसी जो तस्वीर थी,

अब धुँधली धुँधली धुंआ सा लगे।


जिसे चाहा था सांसों से भी ज़्यादा,

वो ख्वाबों से भी फिसल गया।

दिल की दीवारों पे लिखा नाम,

वक़्त की बारिश में धुल गया।


अब तन्हाई से बातें होती हैं,

भीड़ भी अब सुनसान लगे।

मुस्कान तो चेहरा पहन लेता है,

पर रूह बहुत वीरान लगे।


कभी सोचा था साथ चलेंगे हम,

अब हर मोड़ पर तन्हा मिलता हूँ।

जिसे समझा था अपनी दुनिया,

उसी से दूर अब पलता हूँ।

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