कभी हम मिले थे
फूलों से खिले थे
हवाओं में खुशबू थी
फिज़ाओं में जादू थी
बस मुस्कराहट ही मुस्कराहट थी
हर तरफ खुशियों की आहट थी
फिर एक दिन जाने क्या हुआ
जैसा पहले कभी नहीं हुआ
जाने कहाँ से इक सैलाब आया
तिनके तिनके से हमारा आशियाँ बहाया
पल भर में कैसे सब कुछ बिखर गया
मेरा प्यार मुझसे बिछड़ गया
अब तो बस तनहाई है
तू नहीं बस तेरी परछाईं है
तरसती हैं निगाहें
तड़पती हैं बाहें
इंतज़ार के पल
करे बेसुध बेकल
आँखें हैं पथराई सी
साँसे हैं घबराई सी
ना दिन डूबा ना शाम ढली
ना रात हुआ ना सहर मिली
ज़िन्दगी जैसे ठहर गई
उस तूफां से सिहर गई
मन कहीं उलझा उलझा सा है
हर पल बुझा बुझा सा है
खुशियों को जाने किसकी लगी नज़र
दुआओं में भी अब नहीं रहा असर
कब आओगे तुम कुछ तो बता दो
कहाँ चले गए कुछ तो पता दो
तुम जब भी आओगे
जीने को तैयार मिलूँगा
'गर ज़िन्दगी के इस पार नहीं
तो मर कर उस पार मिलूँगा
रूह मेरी तड़पती रहेगी
जब तक तुमसे नहीं मिलेगी
अब रूह को मेरी और मत तड़पाना
मेरी ज़िन्दगी तुम जहाँ भी हो
मेरी आह सुन बस चली आना
व्व्वाआह्ह्ह्ह्ह
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
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Deleteआपका ह्रदय से आभार पूनम जी !!!
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ReplyDeleteBahut Sahi
ReplyDeleteआपका ह्रदय से आभार कल्पना जी !!!
Deletebahut khoobsurat kavita.dil ko chhooti hui.
ReplyDeleteआपका ह्रदय से आभार सुनीला जी !!!!
DeleteSpeachless. .. dil ko chhoo gayi... bahut sunder kaha hai
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