Thursday, 29 August 2013

कभी जब मैं ना रहूँ

कभी जब मैं ना रहूँ

तुम यह समझना

मैं कभी था ही नहीं

मेरा नाम-ओ-निशाँ

मेरा वज़ूद

मिटा देना

अपनी यादों की ज़मीं से

उसकी जगह

इक नयी दरख़्त लगा लेना

कुछ नयी बातों से

अपना मन बहला लेना

अपनी ज़िन्दगी के

उन लम्हों में

जिनमें कभी मैं रहा करता था

कुछ नए रंग भर लेना

कोई नयी तस्वीर उकेर लेना

कि यूँ बेरंग लम्हें

तुम्हें परेशां ना करें

मेरी यादें

उनमें दर्द न भर दें

तुम मेरी यादों के पर क़तर देना

इस से पहले

कि वो तुम्हारे दर्द का सबब बने

मिटा देना मेरी हर निशानी

भुला देना मेरी हर कहानी

मैं कहीं भी ना रहूँ

उन लम्हों में

जिनमें तुम जियो इक नए ढंग में

यही दुआ है मेरी

मिले ज़िन्दगी तुमको इक नए रंग में






क्या हुआ जो ....

क्या हुआ 

जो ये दिल धड़कता है 

क्या हुआ 

जो ये साँसें चलती हैं 

जो इक तू नहीं है 

तो इस धड़कन में जान नहीं है 

जो इक तू नहीं है 

तो इन साँसों में प्राण नहीं है 

जो इक तू नहीं है 

मेरी ज़िन्दगी नहीं है 

जो इक तू नहीं है 


मेरी बंदगी नहीं है 


बस इक सूनी सी तन्हाई है 


जिसमें बस इक तेरी परछाईं है 


कहाँ से ढूंढ कर लाऊँ तुझको 


कि अभी और जीना है मुझको