कुछ तो है
जो तुम्हें भूलने नहीं देता
शायद गाँठे हैं
तुम्हारी यादों की
जो बाँधी थी तुमने
इस दिल पे
हमारे
उन मिलन की घड़ियों में
जब तुम मेरे पास थी
अगर ये गाँठ
खुल जाए
तो शायद
मैं तुम्हें भूल पाऊं
पर तुमने भी तो
गाँठें इतनी कसकर बाँधी हैं
बेचारा दिल मेरा
कसमसाता है
उन बंधे हुए
गाँठों के अन्दर
पर कुछ कह नहीं पाता
तुमने जो बाँधा था उसे
मैं कोशिश करता हूँ
उन्हें खोलने की
तुम्हें भूलने की
पर उन गाँठों को
खोल नहीं पाता हूँ
और मैं तुम्हें
भूल नहीं पाता हूँ
जो तुम्हें भूलने नहीं देता
शायद गाँठे हैं
तुम्हारी यादों की
जो बाँधी थी तुमने
इस दिल पे
हमारे
उन मिलन की घड़ियों में
जब तुम मेरे पास थी
अगर ये गाँठ
खुल जाए
तो शायद
मैं तुम्हें भूल पाऊं
पर तुमने भी तो
गाँठें इतनी कसकर बाँधी हैं
बेचारा दिल मेरा
कसमसाता है
उन बंधे हुए
गाँठों के अन्दर
पर कुछ कह नहीं पाता
तुमने जो बाँधा था उसे
मैं कोशिश करता हूँ
उन्हें खोलने की
तुम्हें भूलने की
पर उन गाँठों को
खोल नहीं पाता हूँ
और मैं तुम्हें
भूल नहीं पाता हूँ
तो कोशिश भी क्यूँ करते हैं ......और ये जो दिल उन यादों की गाठों में कसमसाता रहता है ...खुद भी कहाँ आजाद होना चाहता है ......बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ ...
ReplyDeleteअति सुंदर!
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई...!!