Monday 16 July 2012

पिया मिलन की आस

पिया मिलन की आस लगी मोहे 

कित उनको ढूँढन जाऊं सखी री 

उन संग मोरा नेहा लागा 

कैसे उन्हें बताऊँ सखी री 

जब से गए विदेश सजनवा 

कुछ नहीं है भात सखी री 

पूरनमासी का चाँद खिला है 

मोरे अंगना आज सखी री 

कैसे नहाऊं चांदनी में 

पिया बिन नहीं सोहाए सखी री 

सावन का महीना आया है 

मन में अगन लगाये सखी री 

बारीश की बूंदन जो टपके 

बदन मोरे जराए सखी री 

भोर चले पुरवाई खेतन में 

अंग अंग तडपाये सखी री 

दिन तो काटूं पहर गिन गिन 

रतियाँ कैसे बिताऊँ सखी री 

बैरन निंदिया भागी अंखियन से 

किस विध उसको पाऊँ सखी री 

कहीं ना मोरे प्राण ले जाएँ 

बिरहा की यह अगन सखी री 

कहीं से मोरे पिया को ला दे 

जीवन भर गुण गाऊँ सखी री











No comments:

Post a Comment