Tuesday 15 July 2014

हम और तुम

हम और तुम

थे अजनबी

दो जान

अलग अलग

दो ज़िन्दगी

अलग अलग

दो परिवेश

अलग अलग

रस्म-ओ-रिवाज़

अलग अलग

सोच विचार

अलग अलग

पर कुछ ऐसा था

जो एक जैसा था

हमारी नियति की रेखायें

जो हमें

एक दूसरे की तरफ खींच रहे थे

जब से

हम चले थे

हम मिले

इन रेखाओं के संगम पर

और फिर

इस संगम के पार

जाने कैसे

हम

दो बदन

एक जान हो गये

खुद को छोड़

दूसरे की पहचान हो गये

अब तो चोट तुमको लगती है

तो दर्द मुझको होता है

खुशियाँ कितनी भी क्यूँ ना हो

जो तुम न मुस्कुराओ

तो कम ही होता है

इस सफ़र में

सुख और दुःख

आते जाते रहे

हमें

और हमारी सहनशक्ति को

आज़माते रहे

साथ तुम थी

तो हम थे

साथ तुम हो

तो हम हैं

हमारा यह सफ़र

जाने कितने मोड़ों से

गुज़रा होगा

जाने कितने मौकों पर

ठहरा होगा

पर

बस एक साथ तुम्हारा पाकर

चलता रहा हूँ मेरी हमसफ़र

मेरी ज़िन्दगी मेरी हमनफज़

तुमसे बस इतना ही है कहना

बस यूँ ही मेरे संग संग रहना







मैं मोहब्बत में हूँ

मैं मोहब्बत में हूँ

अब तुमसे क्या कहूँ

बस नशे में हूँ

अब तुमसे क्या कहूँ

पल भर को जी लूं

अब तुमसे क्या कहूँ

चाहे फिर जियूं ना जियूं

अब तुमसे क्या कहूँ

मैं मोहब्बत में हूँ

अब तुमसे क्या कहूँ


अनन्त की ओर

अनन्त की ओर

चला हूँ मैं

पहली सांस से

शुरू हुआ यह सफ़र

आख़िरी सांस पर

शायद अनन्त का द्वार मिले

अग्रसर हूँ मैं बस

हर पल हर घड़ी

उसी अनन्त की ओर

अनन्त के इस सफ़र में

हर मोड़ पर

जाने कितने लोग मिले

जाने कितने बिछड़े

जो मिले

वो अपने भी थे

कुछ सपने भी थे

जो बिछड़े

वो आंसुओं में बह गए

कुछ यादों में रह गये

हसरतों का भी दौर चला

उम्मीदों का भी रहा सिलसिला

कुछ हसरतें रहीं अधूरी

उम्मीदें भी कहाँ हुई पूरी

हर पल हर घड़ी

अग्रसर हूँ मैं

अनन्त के इस सफ़र में

कल से बेख़ौफ़ बेख़बर

अच्छा ही रहा

अब तक का सफ़र

कुछ खुशियाँ मिलीं

कुछ ग़म मिले

आंसुओं से भी हम मिले

ना उड़ने का गुमां रहा

ना गिरने का मलाल

उड़े तो अपनी ज़मीं थाम कर

गिरे तो हौसले नहीं टूटे

बस उठ कर चल पड़े

ठोकरों से सम्हल कर

होनी से बेख़ौफ़ बेख़बर

मालूम नहीं

कब पहुँचना  होगा

उस अनन्त के द्वार पर

विधाता को हो शायद

इसकी खबर

थाम कर आशा की डोर

मैं बस चलता ही जा रहा हूँ

हर पल हर घड़ी

अनन्त की ओर

अनन्त की ओर











Friday 11 July 2014

कभी हम मिले थे

कभी हम मिले थे 

फूलों से खिले थे 

हवाओं में खुशबू थी 

फिज़ाओं में जादू थी 

बस मुस्कराहट ही मुस्कराहट थी 

हर तरफ खुशियों की आहट थी 

फिर एक दिन जाने क्या हुआ 

जैसा पहले कभी नहीं हुआ 

जाने कहाँ से इक सैलाब आया 

तिनके तिनके से हमारा आशियाँ बहाया 

पल भर में कैसे सब कुछ बिखर गया 

मेरा प्यार मुझसे बिछड़ गया 

अब तो बस तनहाई है 

तू नहीं बस तेरी परछाईं है 

तरसती हैं निगाहें 

तड़पती हैं बाहें 

इंतज़ार के पल 

करे बेसुध बेकल 

आँखें हैं पथराई सी 

साँसे हैं घबराई सी 

ना दिन डूबा ना शाम ढली 

ना रात हुआ ना सहर मिली 

ज़िन्दगी जैसे ठहर गई 

उस तूफां से सिहर गई 

मन कहीं उलझा उलझा सा है 

हर पल बुझा बुझा सा है 

खुशियों को जाने किसकी लगी नज़र 

दुआओं में भी अब नहीं रहा असर 

कब आओगे तुम कुछ तो बता दो 

कहाँ चले गए कुछ तो पता दो 

तुम जब भी आओगे 

जीने को तैयार मिलूँगा 

'गर ज़िन्दगी के इस पार नहीं 

तो मर कर उस पार मिलूँगा 

रूह मेरी तड़पती रहेगी 

जब तक तुमसे नहीं मिलेगी 

अब रूह को मेरी और मत तड़पाना 

मेरी ज़िन्दगी तुम जहाँ भी हो 

मेरी आह सुन बस चली आना