Sunday 30 September 2012

तुम्हारी मुस्कराहट

तुम्हारी मुस्कुराहटों में

झलकता है

तुम्हारा प्यार

और

मेरा दुलार

तुम्हारी मुस्कुराहटों पर

कर दूं मैं निसार

मेरी साँसें

मेरी धड़कन

अपना ये संसार

तुम्हारी मुस्कराहट से

महकता है

मेरे मन का

खिलता हुआ गुलशन

तुम्हारे मुस्कराहट से

मिलता है मुझे

हर पल इक नया जीवन

तुम्हारी मुस्कराहट है

तो बहार है

फूलो तितलियों को भी

इनका इंतज़ार है

तुम्हारी मुस्कराहट से

मुस्कुराते हैं चाँद तारे

और खुशी से

झूम उठते हैं

मेरे अरमान सारे




कुछ ख्याल.... दिल से (भाग- १३)


इक नया आस्मां बनाया है मैंने नए सूरज के संग
बनाना है इक आशियाँ अब उन सितारों के संग
जहाँ ख़्वाबों के मेले लगेंगे हमारे अरमानों के संग
फिर खुशियाँ होंगी ढेर सारी और सपने होंगे सतरंग   


ना जाने क्यूँ ये अश्क आँखों में नहीं थमते
नहीं बताना चाहते उन्हें कि हम ग़मज़दा हैं


अंधेरो के इन उजालों में तुम रौशनी ढूंढ लो 
दिन के उजाले अंधेरों में बदल जाते हैं अक्सर 


कहाँ भूल पाया हूँ आज तक उन बीते हुए लम्हों को 
तन्हाई में जो अक्सर आते हैं साथ हमारा निभाने के लिए


वक्त वक्त की बात है
कभी बहार तो कभी ग़मों की रात है
आते जाते हर लम्हों की क्या बात है
तुम्हारा हमसफ़र हर पल तुम्हारे साथ है


शाम आई तो ये ख्याल आया वो फुर्सत में होंगे अभी
चलो छेड़तें हैं फिर कोई भुला हुआ अफ़साना ही सही


पता नहीं कैसे ये बातों का सिलसिला शुरू हुआ 
मेरे दोस्त तुझमे मुझे सब कुछ अपना सा लगा 


उन्हें फुरसत में पाकर हमने छेड़ा था इक अफ़साना
हमें मालूम ना था इस बात का भी बनेगा फ़साना


बिखरी जुल्फें तुम्हारी ..भटकती नज़र हमारी 
क्यूँ ईमान का मेरे तुम ..यूँ लेते हो इम्तेहान


आदत सी बन गई है ना जाने कैसे उनके दीदार की
जब से मिले हैं वो यहाँ सब कुछ पहले जैसा नहीं


चाँद तारे तेरी राह तकते हैं
पलकों से तेरी ये बात कहते हैं
जल्दी से उनको ख़्वाबों की दुनिया में लेकर लाना
उनकी मुस्कराहट से हमें भी है मुस्कुराना


हुस्न और इश्क दोनों ज़माने में ऐसे हुए
कि इश्क हुआ तो हुस्न निखर कर आया
पर इश्क ने दिल को ही अपना साथी बनाया 


उन्हें क्या बताएं कि इस दिल में क्या है
कभी जो चीर के इस दिल को देखा होता
उन्हें वहाँ सिर्फ अपना अक्श नज़र आता


आ जाओ पूरे कर लो अपने सारे अरमानों को तुम
दिल में रहते हो और ढूँढते हो मुझे ज़मानों में तुम


दोस्ती का जज़्बा हर एक में नहीं होता
ये एक ऐसी चाहत है जो हर किसी में नहीं होता

क्या इक इतवार काफी होगा
दिल का दराज खंगालने के लिए
वहाँ तो उम्र भर के फ़साने होंगे
अपनी अपनी जगह पाने के लिए






यह सत्य है

यह कोई

कपोल कल्पित

गाथा नहीं

यह सत्य है

इस सृष्टि का

यह सत्य है

हर प्राणी का

यह सत्य है

हर योनी का

यह सत्य है

शिराओं में बहते लहू का

हृदय के हर स्पंदन का

स्वांस उच्छवांस का

कि हम सब में

तुम बसते हो प्रभु

हमारे हृदय में

तुम्हारा वास है

जो भी हमारी आस है

सब तुम्हारे पास है

फिर क्यूँ

हर प्राणी निराश है

शायद

नियति से ज्यादा की आस है

इसलिए

और पाने की प्यास है

तभी

हर प्राणी निराश है

तुम कुछ ऐसा कर दो प्रभु

जिसकी जो भी आस है

कर्म अगर उसके पास है

पा जाये जो उसकी आस है







Saturday 29 September 2012

कुछ ख्याल.... दिल से (भाग- १२)


क्यूँ मिलन के मौसम में जुदाई की बात करती हो
जब भी हम मिले दिल खिले ये कहते क्यूँ डरती हो

हमारी हसरतों से निकल कर आजकल वो बड़े फुरसत में हैं 
सुना है नए शौक आजमा रहे हैं इस दिल को जलाने के लिए 

हमारी हसरतों से निकलते हुए देखा भी नहीं आपने 
कि रूह मेरी मेरे जिस्म से कैसे निकली जा रही थी 

अब ये रूह ना होगी तो कहाँ ये जिस्म होगा 
और जिस्म नहीं तो फिर ये दिल कहाँ होगा 

गुजर गए जाने कितने सावन अपनों और गैरों को आजमाने में 
पर कुछ भी हासिल ना हुआ इस दिल को इस बेदर्द ज़माने में 

जब से आप निकले हैं हमारे हसरतों से 
ये दिल रूह जिस्म सब हमसे खफा हैं 

मैंने अपना दिल जान जिगर सब तेरे हवाले किया था 
पर तुने इनके बदले मेरी मोहब्बत का सौदा किया था 

दिल क्या ये जान भी हम हथेली पर रख देंगे तेरे 
एक तू जो अपनी वफ़ा का हमें भरोसा दिला दे 

ये दिल नादां था तभी इसने कोई शिकवा ना किया 
नहीं तो सितम कम ना ढाए थे तुमने इश्क में सनम

हमारी वफ़ा की पाकीज़गी पर कोई इलज़ाम हम नहीं ले सकते 
कभी चीर के इस दिल को देखा होता तेरा अक्श तुझे दिखाई देता 

खामोशी भी अपनी जुबान से वही कह गई 
मेरे दिल के दर्द को ख़ामोशी से सह गई 

तुझ पर कोई इलज़ाम लगाऊँ ऐसी मेरी फितरत नहीं 
सजदे में अपने तुझे मैंने मेरा खुदा माना है सनम 

क्यूँ जान गंवाते हो तुम इस दिल के लिए 
बस अपने प्यार से नवाजो हमको 
और कोई हमें हसरत नहीं 

गले तो हम हार कर अपने दुश्मनों को भी लगाते हैं 
आप तो इस दिल के अज़ीज़ मेहमां थे 
फिर क्यूँ इस दिल पर ये तोहमत आप लगाते हैं 










Friday 28 September 2012

इक धुंध


इक धुंध है उस तरफ

जहां कभी ज़िन्दगी थी

मैं था तुम थी

तुम्हारा प्यार था

मेरा दुलार था

वो सारे फ़िक्र थे

हमारे और तुम्हारे

क्यूँ ठंढी पड़ गयी

वो तपीश हमारे चाहत की

क्यूँ फासले उग आये

कैक्टस की तरह

हमारी नजदीकियों के गुलिस्तान में

तुम तुम ना रहे हम हम ना रहे

रिश्तों के उजड़ते रेगिस्तान में

ख्वाहिशें तुम्हारी भी थीं

ख्वाहिशें हमारी भी थीं

उम्मीदों के ढेर

हम दोनों ने लगाये थे

जाने कहाँ से

आकर गिरा

अहम् का बीज

मिटटी में इस सुखी जहान के 

ऐसे कांटे उगे

अहम् के दरख्तों पर

लहुलुहान कर दिए

चाहतों को हमारे

झुलस गया

उम्मीदों का गुलशन

अहम् के जलते अंगारों से

ढह गए ख्वाहिशों के महल

जलजले से उस उफान के

जो मन में उठे

अहम् के खींच तान से

रिश्तों की ऊष्मा

कैसे इतनी ठंढी पड़ गई

कि सर्द हवा के झोंकों से

धुंध बन गई तूफ़ान से

हमारे रिश्तों के दरम्यान

अब वो धुंध है उस तरफ

जहां कभी ज़िन्दगी थी

मैं था तुम थी

पर अब

वहाँ कुछ भी नहीं है

ना प्यार है ना दुलार है

ना फ़िक्र ही किसी की

ना किसी का इंतज़ार है

दूर तक बस

धुंध का गुबार है

हर तरफ अन्धकार है

सिर्फ अन्धकार है




चट्टान मेरे अहम् का


कभी जो मैं चट्टान बनूँ

तुम नदी बन कर आना

मुझसे टकराना

फिर मेरे टुकड़ों को

अपने साथ बहा ले जाना

शायद तभी टूट पाए

मेरे अहम् का ये चट्टान

मुझसे

अब ये नहीं सम्हलता

चाहूं तो भी नहीं पिघलता

तुम जब

नदी बन कर आओगी

इसके टुकड़े टुकड़े हो जायेंगे

फिर तुम्हारी तेज़ धार में

ये सारे टुकड़े बह जायेंगे

कण कण बन बिखर जायेंगे

तुम नदी बन

यूँ ही बहती रहना

उन चूर हुए टुकड़ों के

कण कण को

इतनी दूर बिखेर देना

कि फिर कभी वो

चट्टान ना बन पाए

मेरे अहम् का









प्रतिध्वनि


प्रतिध्वनि

तुम्हारे स्वर की

गूंजती है

नीले आसमान में

घर में बियाबान में

पूरे ब्रह्मांड में

जहां गूंजते थे

तुम्हारे स्वर

जब

तुम करती थी आलाप

पंचम और सप्तम तान में

चाह यह मेरे हृदय की

कभी रुके ना ये ध्वनि

गूंजती रहे निरंतर

इस स्वर की प्रतिध्वनि

तो आओ

छेड़ दो फिर वही तान

गूँज उठे धरती आसमान

झूमे सारा ब्रह्मांड

और फिर

गूंजती रहे निरंतर

इसकी प्रतिध्वनियाँ

नीले आसमान में

घर में बियाबान में

पूरे ब्रह्मांड में

गाओ आज फिर तुम

पंचम और सप्तम तान में




तुम्हारा अक्श


तुम नहीं हो

मगर

तुम्हारा अक्श

नज़र आता है मुझे

हर उस शय में

जिसका ताल्लुक तुमसे था

जैसे तुम उतर आई हो

हर उस शय में

अपनी चीर परिचित मुस्कराहट लिए

अपनी सधी अदाओं से

मेरे दिल को रिझाती

और यह बताती

कि हाँ

मैं हूँ यहाँ

कभी लगता है

शायद ये मेरा भ्रम है

पर नहीं

देखो

मेरी आँखें नम हैं

जैसे भींग जाती थी

मेरी आँखें

तुमसे मिलकर

जब भी हम मिले

जुदा होकर

हर वो शय

जिसका ताल्लुक तुमसे था

आज भी नम कर जाती हैं 

मेरी आँखें 

जब भी देखता हूँ मैं 

तुम्हारा अक्श  

हर उस शय में

जिसका ताल्लुक तुमसे था 



कुछ ख्याल ...दिल से (भाग - ११)


ये इश्क कहाँ किसी के रोके रुका है जो रुकेगा अब
ये इश्क है किया नहीं जाता हो जाता है जानते हैं सब
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जिंदगी तो ऊपर वाले ने बना कर दे दी
इसमें रद्दोबदल नहीं औकात हम इंसानों की 
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आँखों में हर तस्वीर बोलती है
दिल के हर राज़ खोलती है
झाँक कर देखो आईने में तुम
शुन्य भी वहाँ जिंदगी टटोलती है
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शुन्य में भी जीवन ढूंढें अगर तो बस प्राण ही तो चाहिए
बस कुछ साँसें कुछ धडकन और एक जान ही तो चाहिए
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मन का क्या है मन तो बांवरा है 
ये क्षण में तोला क्षण में माशा है 
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वो जिंदगी है जो तुम्हें इस पार खींचती है
जितना भी जतन कर लो जिंदगी यहीं बीतती है
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ख़फ़ा थे अगर वो हमारी फितरतों से
इशारा कर दिया होता अपनी नफरतों से
हम उनकी महफ़िल से नाता तोड़कर
निकल जाते उनकी हसरतों से 
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 कभी दिल में झाँक कर देखा होता 
हमारा आशियाँ तुम्हें वहाँ दिखाई देता 
कहाँ ढूंढती हो मुझको तुम इधर उधर 
बैठा हूँ मैं तुम्हारे दिल में बनाकर घर 
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भला इन रुसवाइयों से डरते हो क्यों तुम
'गर इश्क किया है तो खुलकर करो तुम
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उलझनों को अपनी सारी सुलझा लो तुम
चाहते हो जिसको उसे अपना बन लो तुम
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वो कौन है जो पास है तुम्हारे ....
और वो कौन था जो पास होकर दूर चला गया ..
रिश्तों में यूँ उथल पुथल जिंदगी का लेखा है
कौन किसको कहाँ मिल गया ये किसने देखा है
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यूँ रुसवाइयों से डर कर क्यों जीते हो
इश्क करके क्यूँ गम के आंसू पीते हो
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मेरी रुसवाइयों की तू परवाह ना कर
तेरे दिल में जो है तू उसे बयां कर
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हमसे ख़्वाबों में आने का वादा कर
खुद नींद के आगोश में खो गये
हम तनहा चाँद तकते रहे
वो चैन की नींद सो गये
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कुछ बातें बिना कहे समझी जाती हैं
इन बातों के लिये जुबां नहीं ऑंखें ही काफी हैं
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वक़्त किसी के लिए ठहरता नहीं
गुज़रा वक़्त कभी लौटता नहीं
जी लो ज़िन्दगी के हर पल को
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खामोशियों की जुबां को समझो तुम
यूँ बदनामियों से तो ज़रा डरो तुम ....
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नाकामियों का किस्सा छेड़ा था हमने
देखो हमीं पर तोहमत लगाते हैं वो
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नाकामियों को मेरे यूँ बदनाम ना करो
अगर करनी है वफ़ा तो सरेआम करो
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चाहत में अगर मोहब्बत होती तो यूँ नाकाम ना होती हमारी मोहब्बत
हम तो तेरी मोहब्बत की खातिर लुटाते रहे नींदें अपनी रातों की
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रुसवाइयां तुम्हारी हमें कभी मंज़ूर नहीं
देनी पड़े हमें जान अगर तो दे देंगे
रुसवा तुम्हें जीते जी होने नहीं देंगे
इतना यकीं जाने तुम्हे हम पर है या नहीं
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मोहब्बत पे है 'गर तुमको मेरे यकीं
लाख  दीवारें चाहे हो जाएँ खड़ीं ...
देखना एक दिन तुम मुझको मिलोगे यहीं ...
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हंसी हंसी में यूँ बात को तुम मेरे उड़ाओ नहीं
किया है मोहब्बत तो दिलाओ मुझको यकीं
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मुस्कराहट की भी अपनी जुबां होती है
जो ना जाने क्या क्या बयां करती है





Thursday 27 September 2012

तुम्हारी आँखें

तुम जानती हो ?

मेरा आईना हैं

तुम्हारी आँखें

इनमें देखता हूँ मैं खुद को

अपनी खामियां

अपनी अच्छाइयाँ

सब नज़र आती हैं मुझे इनमें

अक्सर मुझे टोक देती हैं

मेरी गलतियों पर

बिना कुछ बोले

तुम्हारी आँखें 

और कभी

मुझे अहसास कराती हैं

मेरी अच्छाइयों का

बिना मुंह खोले

तुम्हारी आँखें 

मुझे खुद पता नहीं चलता

कैसे मैं सम्हल जाता हूँ

यूँ ही अचानक लड़खड़ाते

जब बन जाती हैं

मेरी पथ प्रदर्शक

तुम्हारी आँखें 

हौसला जब खोने लगता हूँ

खुद अपने आप से लड़ने लगता हूँ

तब पता नहीं कैसे

मुझे हिम्मत बंधाती हैं

तुम्हारी आँखें

बिना कुछ कहे

कितना कुछ कह जाती हैं

तुम्हारी आँखें

बिना कुछ किये

कितना कुछ कर जाती हैं

तुम्हारी आँखें

तभी

मुझको तो जान से प्यारी हैं

तुम्हारी आँखें

हाय काजल भरी मदहोश

तुम्हारी आँखें 






आज अगर

आज अगर मेरी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होता

मैं अपनी सारी चिंताओं को छोड़

इस ज़िन्दगी के लिए

उस परमात्मा का शुक्रगुजार होता

मैं खुश होता

शायद मुस्कुराता


आज अगर मेरी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होता 

मैं फूलों में समय ना गंवाता

अपनी ज़िन्दगी के बीते हुए लम्हों को निहारता

और मुस्कुराता

कि अच्छा वक़्त गुज़रा

सबको उनका यथोचित लौटाता


आज अगर मेरी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होता 

सबको देता

अपना प्यार अपना दुलार अपनी फ़िक्र

सबको बताता

ज़िन्दगी को जिंदादिली से जियो

अहम् और अहंकार को छोड़ो


आज अगर मेरी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होता 

जो भी मिलता

उसे ख़ुशी ख़ुशी स्वीकारता

उस मृत्यु को भी

क्योंकि

मृत्यु तो जीवन है

एक नवजीवन



Wednesday 26 September 2012

समय

इस एक घड़ी से

समय कैसे बदल जाता है

देखते ही देखते

आज कल बन जाता है

बस काँटों की टिक टिक से

वर्तमान भूत बन जाता है

जो अब है

वो कल में चला जाता है

भविष्य कौन देख पाता है

हर आने वाला पल

अब बन जाता है

समय यूँ ही

ससरता रहता है

सदियाँ बीत जाती हैं

भविष्य वर्तमान

और वर्तमान भूत

बनता रहता है 

तुमने कहा था


तुमने कहा था ---

मेरा आना ....

जैसे सुबह की ठंढी हवा का झोंका

मैं जानता हूँ ...

मुझे पता है ....

तभी सुबह का पहला झोंका बन कर ...

दरवाज़े पर तुम्हारे दस्तक देता हूँ

कहीं ताप न बढ़ जाए उम्मीदों की

इसलिए आता जाता रहता हूँ ....

कुछ ख्याल.....दिल से (भाग - १०)

मैं नहीं कहता कि वो बेवफा है
वफ़ा क्या है उसे नहीं पता है
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कितना सुकूं था जब ये इश्क ना था 
इश्क करके क्यूँ वो सुकूं मैं गंवा बैठा
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सुकूं छीन कर इस दिल का बड़े सुकूं से रहते हैं वो
कैसे बेदर्द हैं जो हमारे दर्द से बेखबर से रहते हैं वो
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जिंदगी ना जाने क्या क्या सपने दिखाती है 
पर उनके पूरा होने से पहले नींद टूट जाती है 
--------------
मेरे इश्क के चर्चे लोगों ने ऐसे किये 
गोया ज़माने में इश्क बस इक हमने किये 
--------------
मोहब्बत का क्यूँ मेरे यूँ तमाशा बनाते हो
अपनी नाकामियां तुम मुझ पर आजमाते हो  
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नहीं सोचा था यूँ बात बात में बात जायेगी 
उनसे होती थी जो कभी वो मुलाकात जायेगी  
----------------

तुमसे दूरी हो या नजदीकियां
इस दिल में हैं वही बेचैनियाँ
जाने इस दिल का मुद्दा क्या है
चाहता है तुम्हें या तुमसे खफा है 

----------------
तमाम मुश्किलों के बावजूद हमने चाहा जिंदगी को 
मगर अफ़सोस वफ़ा मेरी मुझको ही रास ना आई 
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हों तुझसे कभी दूर ये दिल नहीं चाहता 
क्या दिल की बात कोई सुन नहीं पाता
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कैसे यकीं दिलाऊँ अब तुमको अपनी मोहब्बत का 
तमाम कोशिशें कर लीं मैंने पर नाकाम रही मेरी वफ़ा  
------------

बिछड़ने का मलाल लिये फिरते रहे हम उम्र भर 
तुमसे हंस हंस कर मिलना सितम ढा गया 
------------

किसी की मोहब्बत को यूँ आजमाया नहीं करते
ये बड़ी किस्मत से होती है इसे ज़ाया नहीं करते
------------
जागते आँखों के ख्वाब का क्या भरोसा 
सुना है नींद में देखे ख़्वाबों की ताबीर होती है 
------------

प्रेम का ढाई आखर पढ़ न सका जो वो अनपढ़ है 
चाहे कितना पढ़ लिख लो ये न पढ़ा तो अनपढ़ है 


Monday 24 September 2012

तुम चले गए


कहते हैं

जीवन क्षण भंगुर होता है

पर ऐसे कहीं कोई

किसी से दूर होता है

जिस तरह

तुम चले गए

हम सब से दूर

कैसे ताक रहे

हम रस्ता तुम्हारा

होकर अपनी

आदत से मजबूर

जबकि हमको ये मालूम है

जहां तुम गए हो

वहाँ से कोई नहीं आता है

वहाँ तो बस जाते हैं सब

लौट कर कोई नहीं आता है

कैसा ये खेल है ईश्वर का

हश्र तो यही लिखा है

इस शरीर नश्वर का

पर एक उम्र जी कर जाते

तो शायद

हम विधि का लेखा मान लेते

अभी तो

तुम्हारा सारा काम पड़ा था

जीवन के दायित्वों का

पूरा रेला खड़ा था

तुमने इनसे

कैसे मुंह मोड़ लिया

तुम्हारा यूँ जाना

कैसे सबको तोड़ दिया

तुम्हारी सुहागन बन

जो इतराती थी

सोलह श्रृंगार कर

इठलाती थी

रंग श्वेत पड़ गया

उस अभागन का

रक्त सारा जैसे

किसी ने निचोड़ लिया

हँसता खेलता

परिवार तुम्हारा

सब को तुम

कर गए बेसहारा

ज़िन्दगी तो

सब फिर भी जी रहे हैं

हर सच्चाई की

कड़वाहट भी पी रहे हैं

बस इक जो तुम नहीं हो

उनके संग

उनकी ज़िन्दगी रह गयी है

होकर बेरंग

वो बेशक अब भी मुस्कुराते हैं

सब से मिलते मिलाते हैं

पर दर्द अपने सीने का वो

हम सब से छुपा जाते हैं


Sunday 23 September 2012

मन करता है

मन करता है

कभी बादल बन उडूं

खुले आसमान में

बरसूँ जी भर

उनके आँगन में

या फिर

भँवरा बन मंडराऊं

उनके बागों में

सुरभि चुराऊँ

फूलों से उनकी

या फिर

हवा बन

उनके जुल्फों को

लहराऊँ

खुशबू चुराऊँ

बदन से उनकी

कोई तो जतन करूँ

जो

अपने साजन से

मिल आऊँ







काले बादल

आज आसमान से

कुछ काले बादल चुरा लाया हूँ 

कोई देख ना ले 

इन्हें सबसे छुपा कर लाया हूँ 

कोई पिटारी मिले 

तो इन्हें सम्हाल लूं 

अबकी तपती गर्मी में 

जब कहीं कोई खेत सुखा होगा 

या कहीं कोई प्यासा होगा 

तब खोलूँगा पिटारी अपनी 

और निकालूँगा 

इन काले घनेरे बादलों को 

उनकी बूंदों से 

प्यासे की प्यास बुझाऊंगा 

खेतों में हरियाली लाऊंगा 

फिर जब सावन आएगा 

इन बादलों को 

वापस उनके घर ले जाऊंगा 

Saturday 22 September 2012

बदलते रिश्ते

तुम कहते हो

रिश्ते बदल जाते हैं

मैं कहता हूँ

रिश्ते नहीं

हम बदल जाते हैं

रिश्तों का क्या है

वो तो हम बनाते हैं

रिश्तों को तो मालूम भी नहीं

हम उनसे क्या चाहते हैं

वो तो बस हम से

बन जाते हैं

फिर हम उन पर

ना जाने

क्या क्या ज़ुल्म ढाते हैं

कभी ये भी नहीं देख पाते हैं

कि आखिर

ये रिश्ते हमसे क्या चाहते हैं

अपेक्षाओं और चाहतों का

सिलसिला

या फिर उनके आँगन में

हँसता मुस्कुराता

कोई फूल खिला

हम बस अपनी ही

करते चले जाते हैं

रिश्तों पर क्या बीती

यह देख नहीं पाते हैं

फिर इन्हीं पे

ये इलज़ाम लगाते हैं

जाने क्यूँ

ये रिश्ते बदल जाते हैं




Friday 21 September 2012

रिश्तों के समीकरण

रिश्तों के समीकरण

क्यूँ और कैसे बदल जाते हैं 

कुछ समझ नहीं आता है 

जिन प्रतिक्रियाओं से पहले 

मीठी खुशबू के साथ 

प्यार के बुलबुले निकलते थे 

शायद क्षार से क्षार मिलकर 

मिठास पैदा करते थे 

उन्हीं प्रतिक्रियाओं में अब  

दम घुटने वाले धुएं के संग 

तकरार के जलजले उबलते हैं 

शायद 

किसी प्यार की क्षार की जगह 

अपेक्षाओं के 

अम्ल ने ले ली है 

तभी क्षार और अम्ल 

आपस में मिलकर 

नफरत का लवण बनाते हैं 

और यही लवण मन के 

ज़ख्मों पर फ़ैल कर 

जलन की अगन लगाते हैं 

धैर्य का क्षार 

इस प्रतिक्रिया को 

जितना भी निर्मल करे 

अपेक्षाओं के अम्ल की सांद्रता 

बढ़ बढ़ कर 

उसे निष्क्रिय करती जाती है 

फिर जाने क्यूँ हम

प्यार के क्षार की जगह 

अपेक्षाओं के अम्ल को 

इस प्रतिक्रिया में ले आते हैं 

मीठी मीठी खुशबु को छोड़ 

दम घुटने वाला धुआं फैलाते हैं 


(क्षार - Alkali; अम्ल - Acid; लवण - Salt; सांद्रता - Concentration)











तुम्हारा आना

मेरी ज़िन्दगी में

तुम्हारा यूँ आना

आकर मुस्कुराना

जैसे

सिन्दूरी सूरज

का निकलना

भोर के धुंधले आसमान में

अपनी किरणें बिखेरना

तम को बुहार कर

मुस्कुराना

और फिर

सारे जहां पर छा जाना

जैसे

तुम छा गयी हो

मेरी ज़िन्दगी में


Wednesday 19 September 2012

तुम्हारा नाजुक मन

जाने क्यूँ

अक्सर मैंने

जाने अनजाने

आहत किया है

तुम्हारा नाजुक मन

तुमने तो सौंपा था मुझको 

अपना तन मन

किया था जब

पूर्ण समर्पण

पर मैं समझ नहीं पाया

तुम्हारा अंतर्मन

तुम्हारे मन की व्यथा

तुम्हारे मन की कथा

जो तुम कहना चाहती थी

हरदम मुझसे

पर मैं अनजान रहा उनसे

कुछ अहम् मेरा

कुछ तुम्हारी नादानियाँ

कुछ उम्मीदें मेरी

कुछ तुम्हारी नाफरमानियाँ

कुछ वक़्त की बंदिशें

कुछ मेरी लापरवाहियाँ

कुछ तुम्हारा भोलापन

कुछ मेरी बेपरवाहियाँ

आज तुमको यूँ उदास देखा

तो मेरा जी भर आया

तुमने अपनी हर ख़ुशी 

मेरी ख़ुशी के लिए गंवाया

और मैं हूँ कि

तुमको समझ ही नहीं पाया

मेरी ज़िन्दगी हो तुम

मेरी ज़िन्दगी तुमसे है

अब कोई गम कभी तुमको

भूल कर भी छू नहीं पायेगा

खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी

हर तरफ

वक़्त भी मुस्कुराएगा







ये तनहाईयाँ

ये रातें

ये तनहाईयाँ

अक्सर मुझको तड़पाते हैं

वो नहीं

उनकी यादें नहीं

अब तो वो तस्सवुर में भी

मेरे नहीं आते हैं

हम तो ख़्वाबों में ही

उनसे मिलकर

मुस्कुरा लिया करते थे

अब वही ख्वाब

आ आकर हमें तड़पाते हैं

उनके यूँ रूठ जाने का

कोई सबब तो नहीं

पर जाने क्यूँ वो हमसे

यूँ ही रूठे जाते हैं

शायद मेरे प्यार में ही

कुछ कमी रही जज्बातों की

तभी मुझको इस हाल में

वो तनहा छोड़े जाते हैं

अब तो रात और दिन

बस यही तनहाई है

वो नहीं हैं पास मेरे

दिल इस बात को

अब तक

ज़ज्ब नहीं कर पाई है


कैसी है ये उलझन

जाने मन क्यूँ छटपटाता है

बेचैनियों के अँधेरे में

जैसे कुछ छुटता सा जाता है

आते हुए सवेरे में

इक अनजाना सा डर

मन में बैठा हुआ है

क्या है वो जो

मुझसे रूठा हुआ है

कोई उम्मीद किसी की

या भरोसा किसी का

कहीं मोहब्बत किसी की

या चाहत किसी का

कैसी है ये उलझन

क्यूँ है दुविधा में मन

साँसे भी बेचैन हैं

भरे भरे से नैन हैं

मन है कि

अँधेरे में डूबता ही जाता है

मंजिल तो दूर

रास्ता भी नज़र नहीं आता है

क्या करूँ

कहाँ जाऊं मैं

इस मन को कैसे समझाऊं मैं

अब ऐसे ही ज़िन्दगी

चलती चली जाती है

दुविधाओं में डूबती उतराती है

शायद मैं भी

अब इसके साथ

जीना सिख गया हूँ

जिंदगी से

लड़ना सिख गया हूँ





Monday 17 September 2012

मेरे अहसास .....जिन्हें मैं छोड़ रहा हूँ

अपने कुछ अहसासों को

आज मैं छोड़ रहा हूँ

उनसे जुड़े हर रिश्तों से

अपना नाता तोड़ रहा हूँ

शायद उनका बोझ उठाना

मुमकिन ना था

इस दिल के लिए

कोशिशें बहुत कीं

मगर हो ना सका

उन उम्मीदों का बोझ

मैं ढो ना सका

किसी के जज्बातों को

अपनी नाकामियों से

कुचलने से बेहतर है

उन जज्बातों से

रुखसत हो जाना

आसां ना था

यूँ उनके ख्यालों से

उनके जज्बातों से

रुखसत होना

पर

मुनासिब भी तो ना था

किसी के जज्बातों को

यूँ  कुचलना

इसलिए

अपने दिल पर

पत्थर रख कर

मैंने ये फैसला किया कि

अपने उन अहसासों को

मैं छोड़ दूं

जिनसे उनकी यादें

जुड़ी हुई हैं

वो जहाँ भी रहें

खुश रहें सलामत रहें

उनको मेरी उम्र भी बख्श देना

मेरे खुदा

उनकी खुशियों से उनको

कभी ना करना जुदा










Sunday 16 September 2012

कुछ ख्याल.....दिल से (भाग -९)

ये  दिल की  लगी भी  कैसी  लगी
ना हम कह पाये ना वो जान पाये


उन्हें  तो फुरसत  नहीं तस्सवुर में  भी मेरे आने की
कहीं ये तरीका तो नहीं मोहब्बत मेरी आजमाने की


जाने क्यूँ बढ़ रहा  था मेरे सीने में लहू सारी रात
देखा तो सीने पे मेंहदी वाली हथेली थी सारी रात


जिंदगी  जब कभी  बेहाल  करती है
तेरी मोहब्बत बड़ा कमाल करती है


हौसला मुझको तू बस इतना सा दे दे
मोहब्बत को मेरी अपनी रज़ा तू दे दे


तेरे इश्क में फ़ना हुए भी अगर
वो मौत  भी खुद पर इतराएगी


मेरी ख्वाहिशों में तुम हो ...तुम्हारी मुस्कुराहटें हैं
मेरी जिंदगी की मौसिकी तेरे क़दमों की आहटें हैं


तोड़कर  आसमां  से तारे  बिखेर  दूं  तेरे  क़दमों पे
बस एक तू जो अपनी मुस्कराहट मेरे हवाले कर दे


मेरी बंदगी  का  अंदाज़  सब  से जुदा  होता है
मेरे महबूब मेरे सजदों में तू मेरा खुदा होता है


तुमने ज़माने की रवायतों को दस्तूर माना है
पर ज़माने से हम नहीं हमसे ये ज़माना है
हम अपनी चाहतों की वो मिसाल बना देंगे
कि लोग हमें मोहब्बत का खुदा बना देंगे


मशरूफियत ने उनकी हमें कितना सताया है
दीदार की हसरत लिए भटकते हैं दर-ब-दर


उनसे थोड़ी सी वफ़ा की हसरत की थी
वो रकीबों से हमारे दिल लगा बैठे 

सत्यमेव जयते

इक शोर है

इक कोलाहल

मन के अंदर

शायद मन के अंतर्द्वंद का शोर

और उस से उपजा

ये कोलाहल

मन का अंतर्द्वंद

सत्य और असत्य के बीच

किस राह चलूँ

इस दुविधा में हूँ

इंसान हूँ भगवान नहीं

मन है

चाहतें हैं

अपेक्षाएं हैं

उम्मीदों का पूरा संसार है

उन्हें कैसे समझाऊं

कैसे बतलाऊं

हर राह में इक दोराहा है

किस राह चलूँ

इसी दुविधा में हूँ

एक मन चंचल है

चंचलता उसकी धाती

ज्यादा खुशियाँ

सम्हाल नहीं पाती

दूसरा मन धीर है

गंभीर है

तकलीफों से नहीं घबराती

लाख तूफां आ जाये

इसको नहीं हिला पाती

असत्य की संगिनी है

चंचल मन

सत्य का साथी

धीर मन

असत्य वाचाल है

सत्य मौन

असत्य में लालच है

सत्य परम संतोषी

असत्य में आडम्बर है

सत्य में सुंदरता

असत्य क्षण भंगुर है

सत्य चीर सनातन

चंचल मन की चंचलता

चाहे असत्य की चपलता

धीर गंभीर मन

ढूंढें सत्य की स्थिरता

दोनों मन मेरे

फंसे हैं इस अंतर्द्वंद में

शायद ईश्वर ने भी चाहा होगा

इस मन को परखना

तभी इस अंतर्द्वंद में

डाला इनको

पर मैं कैसे समझाऊं

अपने मन को

ये तो दोनों ही मेरे अपने हैं

शायद समय इन्हें समझाएगा

सत्य असत्य का भेद बतायेगा

अंततः

जीत तो सत्य की ही होनी है

सत्यमेव जयते














Saturday 15 September 2012

जिंदगी की दुशवारियाँ

जिंदगी की दुशवारियाँ

चैन से दो पल जीने नहीं देतीं

कुछ पल ठहर कर

अपने सीने के ज़ख्मों को

सीना चाहूँ

ज़ालिम ज़िन्दगी

उन ज़ख्मों को सीने नहीं देती

कभी जो अपने अश्कों को

पीना चाहूँ

ये बेवफा ज़िन्दगी

उन अश्कों को पीने नहीं देती

सारे ज़ख्म यूँ ही खुले लिए

फिरता रहता हूँ

अपने अश्कों की मझधार में

अक्सर बिना पतवार के

घिरता रहता हूँ

सारे ज़ख्म यूँ ही

रिसते रहते हैं

अश्कों की धार सूख सुख कर

बहते रहते हैं

और

मेरी नाकामियों के किस्से

कहते रहते हैं

अब इन दुशवारियों के साथ ही

ज़िन्दगी जीता हूँ

समझौता समझो

या मजबूरी

अश्कों को

पानी समझ कर पीता हूँ




Friday 14 September 2012

क्यूँ करते हो मुझसे प्यार

क्यूँ करते हो मुझसे प्यार

इतनी शिद्दत से

क्यूँ करते हो मेरा इंतज़ार

इतने मुद्दत से

मैं तो

आसमान में उड़ने वाला बादल हूँ

आज यहाँ बरस कर

चला जाऊँगा

या फिर

आँखों में लगा हुआ काजल हूँ

अश्कों की बारिश में

बह जाऊँगा

क्या होगा

मुझसे नेह लगा कर

मेरे पास आकर

मुझसे स्नेह बढ़ा कर

मैं कब रुका हूँ

जो अब रुक पाऊँगा

बारिश बन कर

तेरे आँगन में बरस जाऊँगा

या अश्कों के साथ बह कर

तेरी आँखों को तरस जाऊँगा

इसलिए कहता हूँ

मुझको अपनी चाहतों से

दूर रखो तुम

दर्द सहने को खुद को ना

मजबूर करो तुम

मैं बादल हूँ

उड़ कर आऊंगा

तुम्हारे पास

या फिर तुम्हारी

आँखों का काजल बन कर

कुछ पल रहूँगा

तुम्हारे पास

बस वही पल दो पल होंगे

हमारे पास

उसी में मिटानी होगी हमें

जनम-जनम की प्यास





मेरी सज़ा

हर बार क्यों

गलत होता हूँ मैं

क्या उनका होना

मेरी खता है

अपनी चाहत से बढ़ कर

चाहा है उनको

उनकी हर ख़ुशी

मेरी रज़ा है 

वो चाहें ना चाहें

मर्ज़ी उनकी मगर

मेरे प्यार को ना कहें

ये प्यार नहीं

मेरी अदा है

मेरा ईमान मेरा खुदा

जानता है

ये प्यार कोई खेल नहीं

मेरी वफ़ा है

उनसे यूँ दूर रहना

खलता है अक्सर

पर क्या करूँ

अब यही

मेरी सज़ा है


कुछ ख्याल.....दिल से (भाग -८)


हमने तो प्यार में जान अपना कुर्बान किया
और क्या कहूँ नाम तेरे अपना इमान किया
पर तू है कि तुझको मेरी बातों का यकीं नहीं
मेरी मोहब्बत को तुने सरेआम नीलाम किया
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जब भी याद आता है वो गुज़रा ज़माना
मेरे शानों पर सर रख कर तेरा मुस्कुराना
दिल का आज भी वैसे ही वही गीत गाना 
फूलों की गलियों में भंवरों का गुनगुनाना
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हमने तो सिर्फ तेरे अहसासों को छुआ है
अपना हाल दिल को तुने खुद ही कहा है
'गर याद हमारी आई तो वो मेरा प्यार होगा
जिसको कभी तुने अपने दिल से छुआ है  
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दीदार की चाहत लिये हम दर-ब-दर भटकते रहे
उन्होंने ख़्वाबों में आने का फरमान सुना दिया
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कभी तो मेरी जिंदगी में वो शाम आये
जब कहीं से मेरे यार का पैगाम आये
चाहत है कि उनके लबों पे मेरा नाम आये
या फिर मेरी जिंदगी उनके किसी काम आये
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तस्वीरों पर इस क़दर फ़िदा नहीं होते
इश्क में कभी अपनों से जुदा नहीं होते
चाहा है अगर तुमने इस दिल को कभी 
मोहब्बत के सिवा ये रस्म अदा नहीं होते
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मोहब्बत के इन तार्रुफों से मैं बाबस्ता हूँ
मैं तो मोहब्बत के शहर का बाशिंदा हूँ 
चाहे तो कभी मेरे मोहब्बत के घर आ जाना
वहीँ दे दूंगा तुमको तुम्हारे प्यार का नजराना
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हमने तो ना जाने तुझको कहाँ कहाँ ढूँढा
जाने किस किस से तेरे घर का रस्ता पूछा
तू है कि बस यूँ ही मेरा रास्ता तकती रही
कैसा आऊँ तेरे दर पे तुझको ये भी ना सुझा
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हमें भी बता दो हमारा हाल-ए-दिल
हम से ही छुपा गया ये ज़ालिम दिल
जाने तुमसे क्या कह गया मेरा दिल
हाँ अब कहाँ रहा मेरा दिल मेरा दिल
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मुद्दतों बाद आज फिर उनका दीदार हुआ
सीने में दफ़न फिर ज़िंदा मेरा प्यार हुआ
शायद दुआ मेरी असर कर गई इस क़दर
कि जिंदगी से मुझको फिर से प्यार हुआ
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तुम्हारी महफ़िल में बस एक तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ
आ जाओ कि बता दूं मैं तुमको कितना प्यार करता हूँ
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तुम्हारा दिल दुखाने का मेरा कोई इरादा नहीं था
तुम्हारे गम को बढ़ाने का मेरा कोई इरादा नहीं था
मैंने तो बस तुम्हे उदासी के लम्हों से बाहर लाना चाहा
इसलिए तुम्हारे मन को झिन्झोरने के लिये वो शब्द कहा
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वक्त ने तो इतने नायब तोहफे से नवाज़ा है मुझे
मुझे इश्क है तुझसे कितना इसका अंदाजा है तुझे













Thursday 13 September 2012

कुछ ख्याल.....दिल से (भाग -७)


चाहत का ये अंदाज़ भी कितना निराला है
चाहत ने उनकी टूटने से हमको सम्हाला है
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मौन ही प्यार है मौन दुलार है मौन इकरार है 
मौन अहसास की भाषा और मौन ही मनुहार है 
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ये जिंदगी तो यूँ ही करवट बदलती रहती है
कभी हंसी तो कभी आंसुओं में ढलती रहती है 
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असर तुम्हें दिखे ना दिखे तुम्हारी दुआओं का
दुआओं से पहले आकर उसने तुम्हें थाम लिया है 
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जिन ख़्वाबों की ताबीर नहीं 
उन्हें आँखों में मत सजाओ तुम 
वो नासूर बन कर चुभेंगे 
जब ख्यालों में उनको लाओगे तुम 
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खफा 'गर हम होते उनकी फितरतों से
ख्यालों में ना होते वो हमारे हसरतों के
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शब्दों की धार से डरती है तलवार भी ....
शब्द मांझी भी है शब्द पतवार भी
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दरख्तों को भी फिकर होती है अपनी हर शाखों की
गर शाख कोई ज़ख़्मी हो तो दरख़्त अपने आंसू रोता है 
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मोहब्बत तो एक अहसास है
ना कोई वादे ना कोई दावे
बस चाहत की इक प्यास है
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तन्हाई में तनहा नहीं भीड़ में अकेला हूँ
ये क्या हुआ मेरा वजूद मुझ सा नहीं
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गुज़रे हुए कल को इतिहास बना दो
आने वाले कल का एहसास जगा लो
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वो जो आँखें बिछाए बैठा है तुम्हारे इंतज़ार में
उसने अपना सब कुछ लुटाया तुम्हारे प्यार में 
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खुद पे यकीं था पर दिल और कहीं था
जब दिल से बात हुई तू बस वहीँ था
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सोने को कह कर ख़्वाबों में चल दिए
हम तनहा चाँद तकते रहे 












Wednesday 12 September 2012

कुछ ख्याल.....दिल से (भाग - ६)

बढ़ता रहा बदन में मेरे दम-ब-दम लहू सारी रात
देखा तो सीने पे था वो दस्त-ए-हिना सारी रात
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नहीं भूलता उनकी रुखसत का वक्त
उनसे रो रो के मिलना बला हो गया
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दोस्तों से इस क़दर सदमें उठाये हैं जान पर
दिल से दुश्मन की अदावत का गिला जाता रहा
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जाने कितने गम उठाये हमने जिंदगी में
अफ़सोस मेरी वफ़ा मुझको ही रास ना आई
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ऐसा नहीं कि बस गुल की फिकर है मुझे
काँटों से भी निबाह किये जा रहा हूँ मैं
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मेरे गुनाहों का ये सिला दिया मुझको मेरे मौला
मेरी मोहब्बत को ही मुझसे जुदा किया मेरे मौला
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कहीं ये कोई धोखा तो नहीं मेरी आँखों का
ये तुम हो मेरे सामने या फिर तस्वीर-ए-यार है
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मेरी आँखों को नसीब यूँ दीदार आपका
ये क़यामत आ गई या ख्वाब था कोई
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छोड़कर यूँ मेरा चमन आखिर गये सब गुल कहाँ
यूँ तो जाना ना था बुलबुल को जलाकर आशियाँ अपना
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आंसू हमारी आँखों से यूँ ही नहीं बहते हैं
मोहब्बत के गम हम आंसुओं से कहते हैं
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नफरत भी उनकी जाने क्यूँ हमको प्यारी है
नफरत में आखिर उनके अंदर सोच हमारी है
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हार जीत की प्यार में कोई जगह नहीं होती
क्यूंकि प्यार में हार जीत की वजह नहीं होती
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उल्फत के रस्म यूँ निभाते रहे हम
अपनी खुशियाँ उन पर लुटाते रहे हम
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जिंदगी जब भी बेहाल करती है
तेरी मोहब्बत बड़ा कमाल करती है
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मेरे ख्वाबों में तू इस तरह से आती है
मेरी जिंदगी ख़्वाबों में भी मुस्कुराती है